जाने कितने ही उजालों का दहन होता है
शायरी | ग़ज़ल द्विजेन्द्र ’द्विज’20 Feb 2019
जाने कितने ही उजालों का दहन होता है
लोग कहते हैं यहाँ रोज़ हवन होता है
मंज़िलें उनको ही मिलती है कहाँ दुनिया में
रात-दिन सर पे बँधा जिनके क़फ़न होता है
जब धुआँ साँस की चौखट पे ठहर जाता है
तब हवाओं को बुलाने का जतन होता है
खोटे सिक्के कि कोई मोल नहीं था जिनका
आज के दौर में उनका भी चलन होता है
बस यही ख़्वाब फ़क़त जुर्म रहा है अपना
ऐसी धरती कि जहाँ अपना गगन होता है।
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