जीवन
काव्य साहित्य | कविता कवि भरत त्रिपाठी15 May 2023 (अंक: 229, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
(तोटक छंद)
यह जन्म मिला कनकाभ हमें,
मुख तेज मिला अरुणाभ हमें।
मृदुला व्यवहार रखें सबसे,
प्रभु वृष्टि सनेह करें नभ से।
सह घाम विभा कम हो न कभी,
सुन लो नयनों! नम हो न कभी॥
अपनेपन के प्रतिमान बनें,
अवलंब सदा भगवान बनें।
विधु के सम रश्मि वितान बनें,
सत कर्म सुधा रस पान बनें।
अपरार्क बनें तम हो न कभी,
सुन लो नयनो! नम हो न कभी॥
मन से अभिसिप्त करो सबको,
सरिता सम तृप्त करो सबको।
नभ पंथ सदा अपना रखना,
धरती पर पाँव जमा रखना।
हिय शोक न हो भ्रम हो न कभी,
सुन लो नयनो! नम हो न कभी॥
तरु शीतलता नभ वृष्टि करें,
उपकार दिवाकर दृष्टि करें।
हम दीन दुःखी भरतार बनें,
सहयोग करें सहकार बनें।
धन-वैभव के हम हों न कभी,
सुन लो नयनो! नम हो न कभी॥
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