कन्यापूजन
कथा साहित्य | लघुकथा मुकेश कुमार सोनकर15 Apr 2025 (अंक: 275, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
सपना तुम कन्यापूजन के लिए पकवान बना लो मैं पूजा के लिए सामान लेकर आता हूँ . . . कहते हुए सुनील ने अपनी बाईक निकाली। उसकी पत्नी सपना ने हाँ में सिर हिलाया और किचन में अपने कामों में लगी रही, थोड़ी देर में जब सुनील सामान लेकर घर लौटा तब तक सपना ने कन्यापूजन के लिए पकवान बना लिए थे। आज सुबह से ही दोनों पति–पत्नी बहुत ही ख़ुशी-ख़ुशी कन्यापूजन की तैयारियों में जुटे हुए थे, आज नवरात्रि पर्व के अंतिम दिन व्रत का समापन जो करना था।
अब सुनील ने सपना से कहा सारी तैयारियाँ हो गईं तो अब तुम आस-पड़ोस से नौ कन्याओं को बुला लाओ ताकि हम उनकी पूजा करके व्रत सम्पन्न कर सकें। सपना भी हाँ ज़रूर बोलते हुए घर से बाहर निकली और अपने आस पड़ोस में कन्याओं को बुलाने चली गई। उन्हें अभी इस नई जगह में शिफ़्ट हुए कुछ ही महीने हुए थे इसलिए उसे पता नहीं था कि इस शहर में लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों की संख्या औसतन कम है।
सपना ने अपने आस-पास के सभी घरों में जाकर देखा लेकिन उसे कन्या पूजन के लिए नौ कन्याएँ नहीं मिली। हताश होकर वह घर लौट आई और सुनील को ये बात बताई, इस पर उसने अपनी सोसायटी के चेयरमैन को कॉल करके कन्यापूजन के लिए नौ कन्याओं की उपलब्धता के लिए निवेदन किया। वहाँ से भी उसे निराशा हाथ लगी और पता चला सोसाइटी और कॉलोनी ही नहीं शहर में लड़कियों की औसतन संख्या लड़कों से कम है।
दरअसल वहाँ के लोग काफ़ी पुराने ख़यालात के थे और हर किसी को अपने घर में बेटा ही चाहिए था और इसीलिए ज़्यादातर लोग गर्भ में ही कन्या भ्रूण को समाप्त करवा देते थे यही कारण था कि वहाँ पर लड़कियों की संख्या कम थी। ये बात पता चलते ही और कन्यापूजन के बिना अपनी व्रत पूजा पूरी नहीं हो पाने के दुख में सपना रोने लगी। सुनील ने जब उसे चुप कराया तो वह रोते रोते उससे बोली, “ऐसा क्यों है सुनील क्यों लड़कियों को इस दुनिया में आने से रोका जाता है ईश्वर ने तो दुनिया में सभी को समान बनाया है फिर भी इंसान लड़का लड़की में भेदभाव क्यों करते हैं।”
इस पर सुनील की आँखें भर आई और उसने रोती हुई सपना को उठाया और कहा, “चलो सपना हम घर में पूजा नहीं कर पाए तो कोई बात नहीं किसी देवी मंदिर में चलकर वहाँ कन्यापूजन हो रहा होगा उसी में हम भी शामिल हो जायेंगे, पकवान और पूजा सामान पैक कर लो और मैं वादा करता हूँ कि कन्या भ्रूण हत्या और लिंगभेद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए यहाँ के लोगों को जागरूक करने का भरपूर प्रयास अवश्य करूँगा।”
किसी ने क्या ख़ूब कहा है:
“बेटियों को गर्भ में मरवा दिया बेटे की खोज में,
आज गली-गली बेटियाँ ढूँढ़ रहे हैं कन्या भोज में।”
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