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कृष्ण पुकार

तुम पेड़ों पर ना आये,
और ना मेड़ों पर,
तुम नदिया पर ना आये,
और ना बगिया पर,
मैंने दूर खेतों में राह देखी,
तुम फिर भी ना आये|

 

तुम उत्तर में ना दिखे,
और ना दक्खिन में,
तुम पूरब में ना दिखे,
और ना पश्चिम में,
मैंने हर क्षितिज नैन गड़ाई,
तुम फिर भी ना दिखे|

 

तुम स्वप्न में ना मिलते,
और ना स्मृतियों में,
तुम कला में ना मिलते,
और ना कृतियों में,
मैंने नित जप किया तुम्हारा,
तुम फिर भी ना मिलते|

 

तुम बरखा में ना रहते,
और ना बयार में,
तुम पतझड़ में ना रहते,
और ना बहार में,
मैंने हर ऋतु मन भटकाए,
तुम कहीं भी ना रहते|

 

तुम ज्ञान से मिलते,
और ध्यान से,
तुम विरक्ति में रहते,
और भक्ति में,
मैंने जब श्रद्धा से तुम्हें पुकारा,
तुम हर क्षण दिखते|

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