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कुण्डलिया - प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ - होलाष्टक

 

सृजन शब्द: होलाष्टक
 
होलाष्टक की धूम में, नाच रहा संसार। 
जनजीवन को मिल रहा, प्रेम रंग उपहार॥
प्रेम रंग उपहार, देख कर मनवा रीझे। 
मत कर अब परहेज़, रंग से क्यों तू खीझे॥
कहती गाकर प्रीति, होलिका देती दस्तक। 
लेकर रंग गुलाल, मनायें हम होलाष्टक॥
 
होलाष्टक के पर्व में, मुदित हुआ मन श्याम। 
आ जाओ गिरिधर यहाँ, राधा रटती नाम॥
राधा रटती नाम, रात-दिन तुम्हें पुकारे। 
लेकर रोली थाल, खड़ी है उर के द्वारे॥
बिखरी है बस प्रीति, धरा से उस अंबर तक। 
आओ हे मनमीत, पर्व आया होलाष्टक॥

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