लालसा
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. यू. एस. आनन्द7 Mar 2009
दीनानाथ बाबू उस समय हतप्रभ रह गये जब उनके वकील बेटे ने पारिवारिक झमेले को कचहरी में ले जाने की धमकी दे डाली।
जीवन पर्यन्त पैबंद लगे कपड़े पहनकर बेटे के लिए सर्वस्व होम कर देने वाले कर्मयोद्धा पिता को आज पहली बार अपने बेटे का काला कोट आँखों में चुभ-सा गया। क्रोध से उनका चेहरा तमतमा उठा।
परन्तु दूसरे ही क्षण पिता का वात्सल्य मुखर हो उठा, “ठीक है मुन्ना, तेरी अगर यही इच्छा है तो खड़ा कर दो मुझे कटघरे में। अब तक तो मैं तुझे खड़ा करने के लिए संघर्ष करता रहा। मेरी तो लालसा पूरी हो गई। अब तुम मुझे खड़ा करके अपनी भी लालसा पूरी कर लो बेटे।
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