तुम्हारी वह मुस्कान
काव्य साहित्य | कविता डॉ. यू. एस. आनन्द16 Jan 2009
लोग पूछते हैं,
आख़िर क्यों ज़िंदा हो
इतने दर्द और तल्ख़ियों के बीच?
क्या मिलता है इतना
कष्ट सहकर?
मैं क्या जवाब दूँ?
उसे कैसे बताऊँ प्रियतम,
कि तुम्हारी एक सल्लज मुस्कान ही
मेरी वह अमूल्य निधि है
जिसे पाने के लिए,
मैं रोज भगीरथ प्रयास करता हूँ,
और एक बेशर्म की तरह जीता हूँ।
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