लावण्या
कथा साहित्य | लघुकथा अवधेश तिवारी15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
उसका नाम लावण्या था। उसके सुंदर रूप के चर्चे चारों ओर थे। देश-देशांतर में उसके लावण्य का कोई जोड़ नहीं था। उसके बारे में किंवदन्ती थी, ये दूध-परी है, दूध से नहाती है।
दूध-परी जब हँसती, तो लगता कोहरे का आवरण भेदकर सूरज किरण-किरण हो उठा हो। राजकोष के विद्रुम-पात्र में रखे मोती उसके लाल अधरों में थिरकती मुस्कान के सामने फीके पड़ जाते थे।
एक दिन वह चहल-क़दमी करते हुए बग़ीचे का मुआइना कर रही थी कि उसके आते ही सारे फूल मुरझा गए। कलियाँ निष्प्रभ हो गईं।
उसके पीछे खड़े राजा ने मुस्कुरा कर कहा, “दूध-परी! मैं इतनी बार इस बग़ीचे में आया हूँ, कभी इन फूलों ने मेरा इतना मान नहीं रखा। तुम्हारी सुंदरता का सामना करने की क्षमता इन फूलों में भी नहीं है लावण्या!”
वो मुस्कुरा उठी। ऐसा लगा तड़ित-पात हो उठेगा।
हतप्रभ राजा ने बस इतना कहा, “माली बहुत मेहनत करता है लावण्या। अब इस बग़ीचे में मत आना . . .”
दूध-परी ने राजा का आदेश मानते हुए उस बग़ीचे में आना बंद कर दिया। लेकिन बग़ीचा एक बार में ही ऐसा मुरझाया कि फिर दोबारा खिल नहीं सका।
कई दिनों तक फूलों के खिलने की प्रतीक्षा करते-करते राजा चिंतित रहने लगा। उसने अपनी चिंता एक दिन दूध-परी कही। दूध-परी ने कहा, “चलो, मैं एक बार और चलती हूँ और देखती हूँ ऐसा कैसे हो सकता है।”
राजा दुहरी चिंता में पड़ गया। कहीं दूध-परी के जाने से अब बग़ीचे के पेड़-पौधे भी न सूख जाएँ। किन्तु दूध-परी ने मुरझाए बग़ीचे को देखने के लिए वहाँ दोबारा जाने की ज़िद पकड़ ली। रूपसी के लावण्य का लोभी राजा उसकी ज़िद के सामने झुक गया। दूध-परी राजा के साथ बग़ीचे की ओर चल पड़ी।
अरे! राजा ने आश्चर्य से देखा, दूध-परी के एक-एक क़दम की आहट से सौ-सौ फूल खिलने लगे। बग़ीचे के निकट आते ही सारे मुरझाए हुए फूल हँस उठे। चारों ओर सुगंध से वातावरण परिपूर्ण हो उठा।
राजा ने बस इतना कहा, “लावण्या! मैं सोचता था, तुम फूलों के कारण खिली-खिली रहती हो। किन्तु आज पता, लगा यह फूल तुम्हारे कारण खिलखिलाते रहते हैं।”
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सरोजिनी पाण्डेय 2025/11/16 03:22 PM
अवधेश जी, लावण्या कहानी की भाषा का प्रवाह ,शब्द चयन सहज और मोहक है, परंतु अंत तक पढ़ने के बाद भी यह समझ में नहीं आया कि संदेश क्या है? उपवन में दूसरी बार दूध परी के आने पर फूल खिल क्यों उठे? क्या दूध परी के हृदय में पश्चाताप है ?क्या उसके हृदय में करुणा उत्पन्न हुई? क्या फूल दूध परी की सुंदरता देखने के आदी हो गए ?क्या वे दूध परी के पहली बार आने पर उससे ईर्ष्या कर बैठे थे? कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया सामान्यतः कहानी का लक्ष्य स्पष्ट हो जाता है!