लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराज़ाँ दे गया
शायरी | ग़ज़ल डॉ. भावना कुँअर6 Oct 2007
लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराज़ाँ दे गया
दिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-२ ले गया।
वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद की
होंठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया।
उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रही
उसकी आँखों का ये आँसू जाने क्या कह के गया।
प्यार बेमौसम का है बरसात बेमौसम की है
बात बरसों की पुरानी दिल पे ये लिख के गया।
थी जो तड़पन उम्र भर की एक पल में मिट गयी
तेरी छुअनों का वो जादू दिल में घर करके गया।
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