माँ (दीपा जोशी)
काव्य साहित्य | कविता दीपा जोशी3 May 2012
जीवन वन में स्वच्छंद सुमन सी
अंबर चुंबी हिमश्रृंगों सी
विधु की प्राणमयी धारा सी
माँ गंगा की निर्मल काया सी
स्नेहमयी घन अम्बर जैसी
ममतामयी शीतल समीर सी
विशाल हृदयी अथाह सागर जैसी
माँ की छवी परम पावन सी
भोर की प्रथम उज्जवल किरण सी
सघन धूप में छाँव सी
गोधुली में दीपक जैसी
माँ निशापथ में तारक सी
भाषा में स्वर व्यंजन जैसी
गीतों में सुर ताल सी
वीणा के मधुर सुरों सी
माँ मुरली की तान सी
वेदों के ज्ञान जैसी
गीता के सार सी
गुरमुख की वाणी जैसी
माँ काबा काशी सी
चिर सखी राधा जैसी
पथ दृष्टा सुरदर्शन सी
देव सृष्टि की प्रतिकृति सी
माँ महातरु छाया सी
श्रद्धा की परिभाषा जैसी
जीवन का विश्वास सी
धरा के धैर्य का प्रतिरूप सी
माँ स्र्वज्ञय ज्ञाता सी
हृदय में स्पंदन जैसी
श्वास निश्वास के बंधन
रोम रोम में रुधिर सरीखी
माँ परम कल्याणी सी
देवालय की अनुपम मूरत सी
गिरजा घर की सुखद शान्ति सी
पारस सी शक्ति धारणी
माँ तुम ही परमेश्वर हो
माँ तुम ही परमेश्वर हो
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं