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माँ मौन क्यों हो

 

माँ मौन क्यों हो तुम कुछ तो बोलो न 
हृदय में जो है छुपा 
वो राज़ दिल के खोलो न 
कुछ कहा फिर किसी ने तुम्हें 
या! हुई कोई अनबन सी है 
क्यों मस्तक पर लकीरें 
गहन चिंतन की हैं 
माँ तुमने परिवार पर अपना सर्वस्व लुटाया है 
बिना कुछ कहे ही कर्त्तव्यों को निभाया है 
माँ तुम्हारी ये चुप्पी 
मुझको विचलित करे 
कुछ तो बोलो, 
हृदय में जो राहत भरे 
वो हँसी वो मुस्कुराहटें गुम क्यों हुईं
तुम प्रबल-सी सबलता की मूरत रही 
मेरे बिखरे से शब्दों को तुम्हीं ने सँभाला सदा 
जब भी रहा शब्द-शून्य दुविधाओं से निकला सदा 
आज तुम ही यूँ निःशब्द 
बनी बैठी हो 
माँ मौनता के कपाटों को खोलो ज़रा
माँ चुप क्यों हो कुछ तो बोलो ज़रा . . . बोलो ज़रा!

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टिप्पणियाँ

Vivek Kumar 2024/05/02 08:03 AM

अति सुन्दर हिंदी काव्य

Vivek Kumar 2024/05/01 08:00 PM

अति सुन्दर हिंदी काव्य

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