मौसमों की चल रही है ख़ूब मनमानी
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत दौलतराम प्रजापति15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
आसमाँ में बढ़ रहीं हैं
मेघों की हल चल
कौन जाने बिजलियाँ
या कि गिरे पानी॥
हो गईं हैं सब तरफ़
सारी दिशाएँ गुम।
छुप गया सूरज धरा को
घेरता है तम॥
जो भी होगा सब सहेगी
त्रास ज़िंदगानी॥
है अनिश्चित कुछ भी अब
कहना बहुत मुश्किल।
साँस है ठहरी इधर
ज़ोरों धड़कता दिल॥
मौसमों की चल रही है
ख़ूब मनमानी॥
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