मेरे गुलमोहर
काव्य साहित्य | कविता कुमारी अर्चना20 Sep 2017
मेरे प्यारे गुलमोहर
कहाँ चले गये हो
मुझ में सावन भर कर
कहीं ओर भादों बनके बरखा करने को
मुझे प्यासा छोड़ गये!
वो जो मुझे तड़पाता था
इंतज़ार करवाता था
मुझे तरसाता था
अपनी बाँहों में भर कर
प्यार का फूल बरसात था!
वो फूल नहीं था
जो आँधी आने से
डाली से टूट मुरझा जायें
वो तो मेरे मृत शरीर में जान फूँक गया
प्यार की लौ जला के
अंदर ही अंदर जलने को!
मेरे प्यारे गुलामोहर
मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ
इसलिए गुलमोहर का एक पेड़
आँगन में लगा रखा है
जब भी मस्तानी हवा चलती
फूल उड़कर मुझ पर गिरते हैं
उसकी मिठ्ठी ख़ुशबू
तुम्हारे होने का अहसास कराती है
जब मेरे साँसो में जाती है!
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