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मेरी आँख में ठहरा हुआ उसका चेहरा

मेरी आँख में ठहरा हुआ उसका चेहरा, 
ऐसा लगे जैसे जलधि का सुकून हो। 
 
नेह का प्रसून हो, 
असंख्य जज़्बातों का जुनून हो। 
 
जब जब मुस्काया करती है वो, 
खिलती महकती बग़िया लगती है वो। 
 
कितना ही चाहो उससे, 
मगर निग़ाह न हटती न थकती। 
 
वो है ही इतनी ख़ूबसूरत, 
लगे जैसे सादगी की मूरत। 
 
उसकी सादगी में जीता और मरता हूँ, 
उसकी सादगी से ही बेइंतेहा इश्क़ मैं करता हूँ। 
 
मैं ख़ुद को कवि नहीं, 
पर उसको कविता मानता हूँ। 
 
उसे बारम्बार देख देखकर, 
उसकी ख़ूबसूरती को सँवारता हूँ। 
 
उसकी खुलती ज़ुल्फ़, 
जैसे काली घटाएँ। 
 
मन को अति भाएँ सुगंध फैलाएँ, 
’अतुल’ के मन को ख़ूब बहकाएँ। 
 
कजरारी आँखों पर उसकी, 
मदमस्त ’अतुल’ दीवाना है। 
 
उन आँखों की मस्ती का, 
डूबकर लुत्फ़ उठाना है। 
 
उसकी जिस्म से ख़ुशबू की मादकता, 
मेरे मन को ख़ूब लुभाती है। 
 
कोयल भी ख़ुश हो होकर जैसे, 
कुहू कुहू तान सुनाती है। 

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