मुझको अपना एक पल...
शायरी | ग़ज़ल मानोशी चैटर्जी3 May 2012 (अंक: 163, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
मुझको अपना एक पल वे दे के अहसाँ कर गये
जाने अनजाने मेरे जीने का सामाँ कर गये
क्या कहें कि सबसे आके किस तरह से वो मिले
मुझको मेरे घर में ही जैसे कि मेहमाँ कर गये
बाद मुद्दत के ज़रा सा चैन आया था अभी
हाल मेरा पूछ कर वो फिर परेशां कर गये
दोस्ती ना की सही अब दुश्मनी कर ली, चलो
कुछ नहीं तो एक रिश्ता ही दरमयाँ कर गये
लोगों का अब चाँद से तो फ़ासला कम हो गया
अपने घर की ही ज़मीं को ‘दोस्त’ वीरां कर गये
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