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नदी एक डायन थी : केदारनाथ त्रासदी की मार्मिक कविताएँ

 

डॉ. पवनेश ठकुराठी का ‘नदी एक डायन थी’ कविता संग्रह 16-17 जून, 2013 को उत्तराखण्ड में आई आपदा पर केंद्रित है। यह संग्रह वर्ष 2013 में अल्मोड़ा किताब घर, अल्मोड़ा से प्रकाशित हुआ। ‘नदी एक डायन थी’ की भूमिका में केदारनाथ की त्रासदी का वर्णन करते हुए डॉ. पवनेश लिखते हैं:

“इस आपदा में जान-माल की अपार क्षति हुई। सर्वाधिक तबाही 16 जून, की रात्रि को केदारनाथ घाटी में बादल फटने के कारण हुई। वहाँ का रामबाड़ा बाज़ार पूर्ण रूप से मंदाकिनी की उफनती धाराओं में बह गया। हज़ारों तीर्थयात्री मौत के मुँह में समा गए और सैकड़ों लापता हो गए। मूसलाधार बारिश ने केदारनाथ ही नहीं बल्कि धारचूला, मुनस्यारी, श्रीनगर, ऋषिकेश जैसे स्थानों में भी भयानक तबाही मचाई। तबाही को पंख लगाने में नदियों का सर्वाधिक योगदान रहा। केदारनाथ में मंदाकिनी, श्रीनगर में अलकनंदा, ऋषिकेश में भागीरथी, धारचूला में काली और मुनस्यारी के मदकोट क्षेत्र में गोरी नदी ने अपना क़हर बरपाया।”1

इस भयानक आपदा में जान-माल की अत्यधिक क्षति हुई थी। भारतीय सेना की तत्परता ने अनेक जानें बचाईं, “बाढ़, भूस्खलन की इस आपदा ने उत्तराखण्ड में पाँच हज़ार से अधिक लोगों की जान ले ली। बाहर सौ से अधिक मकानों और दो दर्जन से अधिक पुलों को तबाह कर दिया। एक लाख से अधिक लोग विभिन्न स्थानों पर फँस गए। सेना की तत्परता, साहस एवं सेवा के बल पर शासन-प्रशासन ने इन लोगों को बीहड़ जंगलों से निकालकर उचित स्थान पर पहुँचाने में कामयाबी पाई।”2

कवि कहता है कि प्रकृति के इस आततायी रूप को देखकर ही ‘नदी एक डायन थी’ कविता संग्रह का जन्म हुआ, “प्रकृति के इस प्रचंड आततायी रूप ने मुझे क़लम उठाने हेतु मजबूर किया और जन्म हुआ ‘नदी एक डायन थी’ नामक कविता संग्रह का। इस संग्रह की अधिकांश कविताएँ प्रबल वेग से बहती नदियों के आतंक को बयाँ करती हैं।”3

डॉ. पवनेश के इस ‘नदी एक डायन थी’ कविता संग्रह में उत्तराखंड आपदा की त्रासदी का यथार्थ चित्रण हुआ है। आपदा में अकाल काल के गाल में समा गये लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए वे लिखते हैं:

“तुम आओगे ज़रूर
इन्हीं वादियों में कभी
मिट्टी, पानी, दूब, घास, पेड़, पंछी
किसी न किसी रूप में
और दिलाओगे एहसास
अपने होने का।”4

आपदा के दौरान कवि को जीवनदायिनी नदी का रौद्र रूप पगलाई, बौखलाई और भूखी डायन सा नज़र आता है:

“उस दिन नदी
नदी नहीं थी
वह डायन थी
पगलाई हुई, बौखलाई हुई
हाथ में नंगी तलवार थामे हुए
भूखी, प्यासी, अतृप्त . . .”5

इस संग्रह की तबाही के बाद कविता में कवि ने आपदा प्रभावित क्षेत्र का चित्रण करते हुए लिखा है:

“तबाही के बाद
वह स्थान ग़ायब हो गया
मानचित्र से।”6

‘वो कहाँ होंगे’ कविता में कवि आपदा में हताहत हुए, जान गँवा चुके लोगों की स्थिति का चित्रण करते हुए लिखता है:

“वो होंगे यहीं कहीं
किसी झाड़ी के पीछे
खंडहरों के आस-पास
या दबे हुए मलबे के नीचे।”7

आपदा प्रभावित क्षेत्र पहले चाहे कितना ही आबाद रहा हो, लेकिन आपदा के बाद वहाँ पर धूल-मिट्टी के सिवा कुछ नहीं बचता:

“लेकिन अंततः बचा क्या? 
कुछ भी नहीं
वही धूल वही मिट्टी . . .”8

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं, लेकिन भयंकर आपदाओं के आने के बावजूद हमने आज तक न तो कोई सबक़ लिया है, यह हमारी बहुत बड़ी कमज़ोरी है:

“पहाड़ पर अक़्सर आपदाएँ आती रही हैं
पहाड़ पर ही नहीं बल्कि
पूरी दुनिया में आपदाओं ने क़हर बरपाया है
चाहे वह संपूर्ण विश्व को हिला देने वाली सुनामी
या पहाड़ों पर बादल फटने से मची तबाही हो
फिर भी हमने कहीं से सबक़ नहीं लिया
और न उठा सके हैं अब तक कोई सार्थक क़दम।”9

डॉ. पवनेश का मानना है कि बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के लिए मनुष्य स्वयं ज़िम्मेदार है। ‘केदारनाथ’ आपदा का दोषी भी मनुष्य ही है। उनकी ‘दोष किसका’ कविता इसी बात की ओर संकेत करती है:

“हज़ारों निर्दोष मारे गए
हज़ारों हो गए बेघर
आखिर दोष किसका? 
अतिक्रमण, दोहन, कटान, खुदान
आखिर कर कौन रहा है? 
आप और हम
चौंकिये मत
हम ही हैं इन सबक़े ज़िम्मेदार
और कोई नहीं।”10

इस प्रकार डॉ. पवनेश ठकुराठी के ‘नदी एक डायन थी’ कविता संग्रह में जून, 2013 में केदारनाथ में आई आपदा का यथार्थ चित्रण हुआ है। ‘नदी एक डायन थी’ कविता संग्रह की कविताएँ केदारनाथ त्रासदी की मार्मिक कविताएँ हैं। 

प्रकृति का रौद्र रूप और आपदा के दुष्परिणाम इन कविताओं में चित्रित हुए हैं। कवि का मानना है कि ‘केदारनाथ’ जैसी आपदा के लिए कहीं-न-कहीं मनुष्य ही दोषी है, क्योंकि प्रकृति का दोहन मनुष्य ही कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप भयंकर आपदाओं का आविर्भाव होता है। 

संदर्भ:
नदी एक डायन थी, पवनेश ठकुराठी, अल्मोड़ा किताब घर, अल्मोड़ा, 2013, पृ. 4
वही, पृ. 5
वही, पृ. 5
वही, पृ. 10
वही, पृ. 20
वही, पृ. 23
वही, पृ. 26
वही, पृ. 42
वही, पृ. 49
वही, पृ. 51


—डॉ. बंदना चंद, 
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, 
हिंदी विभाग, 
स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लोहाघाट
जिलाः चंपावत (उत्तराखंड)-262524
 

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