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कथाकार शीतांशु भारद्वाज की कहानियाँ

हिंदी साहित्य जगत के प्रमुख कथाकारों में शीतांशु भारद्वाज भी प्रमुख स्थान रखते हैं। इनका जन्म 1 नवंबर, 1936 में अल्मोड़ा के सल्ट में हुआ। इनकी माता का नाम स्व. श्रीमती दूला देवी एवं पिता का नाम स्व. पानदेव था। शीतांशु भारद्वाज ने अपना रचना कार्य दिल्ली एवं राजस्थान में रहकर किया। इन्होंने अनेक विधाओं में लेखन कार्य किया, किन्तु सर्वाधिक रूप से कहानी साहित्य एवं उपन्यास साहित्य लिखा। इसके अलावा उन्होंने लेख, लघुकथाएँ आदि पर भी क़लम चलाई। उन्होंने अपने लेखन की शुरूआत कविता से ही की थी। ‘विरहणी शैलबाला’ उनकी पहली कविता थी। आगरा से निकलने वाली साप्ताहिक ‘सुपथ’ पत्रिका में उनकी यह पहली कविता छपी थी। इसके अलावा ‘संयोगिनी राधा’ शीर्षक से उनकी कविताएँ छपती थीं। 

शीतांशु भारद्वाज ने 1960 से लेखन आरंभ किया। उनकी पहली कहानी ‘मालू सौक्याण’ थी जो डॉ. श्यामाप्रसाद भारद्वाज ‘विरही’ के नाम से ‘शैलजा पत्रिका’ के सितंबर, 1961 अंक में छपी थी। इस प्रकार ‘मालू सौक्याण’ कहानी से उनकी कथा यात्रा की शुरूआत होती है। इसके पश्चात् उनके ‘एक और अनेक’ (1978); ‘डॉक्टर आनंद’ (1979); ‘दो बीघा जमीन’ (1982); ‘एक और सीता’ (1987); ‘फिर वही बेखुदी’ (1990); ‘मोड़ काटती नदी’ (1996); ‘नुमाइंदे’ (1996); ‘लौटते हुए’ (1998); ‘दूर! बहुत दूर’ (2005); ‘सीखचों के पार’ (2000); ‘शंहशाह-ए-तहबाजारी’ (2011); आदि उपन्यास तथा ‘पराया सुख’ (1985); ‘तलाश’ (1986); ‘अपना-अपना सुख’ (1987); ‘गलुमोहर के लिए’ (1989); ‘गले लगने का सुख’ (1990); ‘मर्द का दर्द’ (1995); ‘जुड़वा पति-पत्नी’ (1995); ‘दरकते रिश्ते’ (1995); ‘हिंदी की बिंदी’ (2000) और ‘अपवाद और अन्य कहानियाँ’ (2003) प्रकाशित हुए। उपन्यासों और कहानियों के अलावा भी उन्होंने ‘विरहिणी शैलबाला’ नामक खंडकाव्य; ‘जाति-बिरादरी’ नामक नाटक तथा कुछ निबंध और बाल साहित्य आधारित रचनाएँ भी लिखी। 

शीतांशु भारद्वाज ने विभिन्न पत्रिकाओं का संपादन भी किया। ‘हिमाद्रिजा’ पत्रिका का प्रकाशन दिल्ली में सन् 1963-64 के आस-पास हुआ था। वह अपने वेतन से इसका प्रकाशन करते थे। उस समय इसकी उपलब्धि यही रही कि उत्तराखंड की प्रतिभाओं को प्रकाश में लाया जाए। 4 इसके अलावा इन्होंने नवोदित लेखकों को प्रकाश में लाने के लिए ‘फाल्गुनी फ़ीचर्स’ नाम से फ़ीचर सेवा आरंभ की। इन्होंने अनेक पुस्तकों का संपादन कार्य किया। ‘बालमन की कहानियाँ’, ‘वृद्धमन की कहानियाँ’, ‘युवामन की कहानियाँ’, ‘नारी मन की कहानियाँ’, ‘सच्चे मन की कहानियाँ’, ‘हास्य व्यंग्य का गुलदस्ता’ आदि इनके द्वारा संपादित पुस्तकें हैं। इनकी कुछ अप्रकाशित रचनाएँ भी हैं—‘इक्यावन लघु कथाएं’, ‘फिर भी’ (उपन्यास), ‘अभिसिप्त अर्धांगिनी’ (कहानी संग्रह), ‘कथा यात्रा’ (भाग 1, 2, 3, 10)। कथाकार शीतांशु भारद्वाज ने इसके अतिरिक्त अनेक लेख और कहानियाँ लिखीं जो कि अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इन पत्र-पत्रिकाओं में सरिता, नवनीत, सिरोपमा, मधुमती, मुक्ता, लोकायतन आदि प्रमुख हैं। कथाकार शीतांशु भारद्वाज के प्रमुख कहानी संग्रहों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है:

1. गले लगने का सुख (1990): शीतांशु भारद्वाज के प्रस्तुत कहानी संग्रह में मल 16 कहानियाँ संगृहीत हैं। ये कहानियाँ ‘एक और कुंती’, ‘गले लगने का सुख’, ‘छत’, ‘नया क्षितिज’, ‘खरबूजा’, ‘अपनी छत’, ‘नीड़ का निर्माण’, ‘आँधी के बाद’, ‘धुन’, ‘चलता पुर्जा’, ‘मेहंदी रचे हाथ’, ‘चारदीवारी के आर-पार’, ‘हादसा’, ‘उसके बाद’, ‘अपने-पराये’, ‘रिश्ते-नाते’ हैं। इन कहानियों में शीतांशु भारद्वाज ने मानवीय मन की कुंठा, हताशा, निराशा, घुटन, भ्रम, विवशता, रिश्तों के मकड़जाल आदि को विभिन्न चरित्रों के माध्यम से उजागर किया है। सामाजिक परिवेश और नारी के संघर्ष एवं जीवनगत समस्याओं का चित्रण इस कहानी संग्रह की प्रमुख विशेषता है।

2. मेरी चौदह कहानियाँ (1994): इस कहानी संग्रह में चौदह कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ ‘दिवास्वप्न’, ‘संगशाला’, ‘दूसरी पंक्ति में’, ‘जुगनू’, ‘सिमटते दायरे’, ‘वापसी’, ‘नया क्षितिज’, ‘कांपता मन’, ‘आँधी के बाद’, ‘धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र’, ‘राष्ट्रभक्त’, ‘छू-छत’, ‘रूपसी’ हैं। इस संग्रह की कहानियाँ समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, शैक्षणिक संस्थानों की वास्तविक स्थिति, हड़ताल की समस्या, निम्न एवं मध्यमवर्गीय आर्थिक कठिनाइयों के साथ-साथ देशप्रेम की भावना का चित्रण करती हैं।

3. दरकते रिश्ते (1995): इस कहानी संग्रह में 12 कहानियाँ है जो कि आकार में लंबी हैं। ये कहानियाँ ‘एक और कामायनी’, ‘एक थी सुधा’, ‘कफनफरोश’, ‘गौरा’, ‘दरकते रिश्ते’, ‘फड़फड़ाती हुई लौ’, ‘फिर भी-1’, ‘रात की बात’, ‘वाग्दत्ता’, ‘शैला’ हैं।

4. मेरी इक्कीस कहानियाँ (1998): शीतांशु भारद्वाज के इस कहानी संग्रह में कुल 21 कहानियाँ संगृहीत हैं। ये कहानियाँ ‘उजाले की ओर’, ‘एक और किनारा’, ‘किनारा’, ‘खाली हाथ’, ‘गंगा’, ‘चलता पुर्जा’, ‘छितराते इंद्रधनुष’, ‘कांटे’, निरवंशिया’, ‘पर्दाफाश’, ‘बदलाव’, ‘मंगेतर’, ‘मन की बात’, ‘रुचि नहीं लौटेगी’, ‘वे दोनों’, ‘सामने का शीशा’, ‘सिक्के का दूसरा पहलू’, ‘सुबह के भूले’, ‘शेर बहादुर’ हैं।

5. धरती का सत् (2001): इस कहानी संग्रह में 16 कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ ‘दूरी’, ‘दूसरी पंक्ति में’, ‘दूसरों के लिए’, ‘नक्शे की मालकिन’, ‘नीमचढ़ा करेला’, ‘पहचान’, ‘परदेशी’, ‘पुरस्कार’, ‘बजट और बजट’, ‘महारथी बनते-बनते’, ‘यही सच है’, ‘लाल पान की बेगम’, ‘वापसी’, ‘हमदम के लिए’, ‘धरती का सत्’, ‘हमराज’ हैं।

कथाकार शीतांशु भारद्वाज की कहानियाँ प्रमुखतः भारत के मध्यमवर्ग पर केंद्रित हैं। इन कहानियों में ग्राम्य एवं नगरीय जीवन की समस्याओं एवं आधुनिक भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक दशाओं का यथार्थ चित्रण हुआ है। इनकी कहानियाँ नारी के संघर्ष और उसकी जिजीविषा का भी चित्रण करती हैं। इनकी कहानियों की भाषा सरल, सहज है। कहानियाँ आत्मकथात्मक, डायरी तथा नाटकीय शैली में लिखी गई हैं। 

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