अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

नए ज़माने का एटीएम 

धनाधन बैंक के मैनेजर आज बड़े ग़ुस्से में हैं। नामी-गिरामी लोगों की लोन फ़ाइल बग़ल में पटकते हुए सेक्रेटरी से कहा, “किसानों की फ़ाइल ले आओ। देखते हैं, किसके पास से कितना आना है।” 

सेक्रेटरी ने आश्चर्य से कहा, “सर! कहीं ओस चाटने से प्यास बुझती है। बड़े लोगों की लोन वाली फ़ाइलें छोड़ ग़रीब किसानों की फ़ाइलों में आपको क्या मिलेगा? किसानों के सारे लोन एक तरफ़, हाई-प्रोफ़ाइल लोन एक तरफ़।”

मैनेजर ने गुर्राते हुए कहा, “तुम्हें क्या लगता है कि मैं बेवक़ूफ़ हूँ। यहाँ हर दिन झक मारने आता हूँ। हाई प्रोफ़ाइल लोन वाली फ़ाइल छूने का मतलब है बिन बुलाए मौत को दावत देना। हाई-प्रोफ़ाइल वाले किसी से डरते नहीं हैं। इनकी पहुँच बहुत ऊपर तक होती है। मेरी गर्दन तक पहुँचना उनके लिए बच्चों का खेल है। ग़रीबों का क्या है, वे अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए कुछ भी करके लोन चुकायेंगे। वैसे भी ग़रीबों का सुनने वाला कौन है? देश में अस्सी करोड़ से अधिक ग़रीब हैं। वे केवल वोट के लिए पाले जाते हैं। ऐसे लोगों को गली का कुत्ता भी डरा जाता है।” 

मैनेजर की बातचीत के दौरान एक बंदा सूट-बूट पहने कैबिन में घुस आया। अपना परिचय देते हुए ख़ुद को मनीटेक सोल्यूशन का प्रतिनिधि बताया। उसने कहा, “मैनेजर साहब आजकल बैंकों की हालत बड़ी ख़स्ता हो चली है। छोटी मछलियाँ पैसा जमा करती हैं, तो बड़ी मछलियाँ उसे लेकर रफ़ू-चक्कर हो जाती हैं। ऐसे में बैंक ठन-ठन गोपाल नहीं बनेगा तो क्या भगवान कुबेर बनेगा? इसलिए इस स्थिति से उबारने के लिए हमने एक मशीन बनाई है, जिसका नाम है–आओ समझौता करें। इस यंत्र को एटीएम के भीतर फ़िट करना पड़ता है।” 

मैनेजर ने आश्चर्य से पूछा, इससे क्या होगा। प्रतिनिधि ने कहा, मान लीजिए कोई व्यक्ति एटीएम से पैसे ड्रा करने आता है। अपनी इच्छुक धनराशि एंटर करते ही मशीन कह उठेगी, “महोदय एटीएम में इतना पैसा नहीं है। मैं आपके हाथ-पैर जोड़ती हूँ। कृपया थोड़ी राशि निकालें।” यदि इस पर व्यक्ति आपत्ति जताता है और उसके विरुद्ध जाकर अपनी इच्छुक धनराशि की माँग करता है, तब मशीन कह उठेगी, “भारत देश हमारी मातृभूमि है। यहाँ रहने वाले सभी हमारे भाई-बहन हैं। बची-खुची राशि का मिल-बैठकर इस्तेमाल करना चाहिए। देशभक्ति का मतलब केवल जान लुटाना नहीं होता। एटीएम से कम धन राशि निकालना भी देशभक्ति है।” यदि इस पर भी व्यक्ति नहीं मानता है, तो वह उसे डराएगी-धमकाएगी और कहेगी, “तुम्हें इतने पैसों की ज़रूरत क्यों है?”

मैनेजर ने बीच में टोकते हुए कहा, “कमाल है व्यक्ति पैसा अपनी ज़रूरतों के लिए निकालता है। सामान ख़रीदी, शादी, अंत्येष्टि अन्य क्रियाकलापों के लिए पैसा नहीं निकालेगा तो और क्या करेगा?”

प्रतिनिधि ने कहा, “यह मशीन दर्शन बोध भी कराती है। इसमें शादी, अंत्येष्टि आदि कारणों के लिए पैसे निकालने के विकल्प होते हैं। शादी का बटन दबाने पर मशीन कह उठेगी, शादी करने से क्या फ़ायदा? झंझट ही झंझट। सिंगल ज़िन्दगी–मस्त ज़िन्दगी। यदि कोई अंत्येष्टि के लिए राशि एंटर करता है तब मशीन कह उठेगी, जब आदमी ही मर गया तो पैसा लेकर क्या करोगे। पैसों का मोह करना व्यर्थ है। इसलिए तुम यहाँ से लौट जाओ।” 

यह सब सुन मैनेजर को मशीन इतनी अच्छी लगी कि आसपास की अपनी शाखाओं के सभी एटीएम में इसे लगाने का फ़ैसला किया। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं