फिर भले मत करजो तम सराद
काव्य साहित्य | कविता राजेश भंडारी ‘बाबू’15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
(मालवी कविता)
सब जाने तम कितरा भी हो लखपति,
सब जाने तम कितरा भी हो कामपति,
बुजुर्गों का साथे दो पल गुजारनो भूलो मती,
रोज पेला उठी के लो उनको आशीर्वाद,
फिर भले मत करजो तम सराद।
नि चिये उनके तमार से खीर पुडी हलवा,
वि तो चावे बिचारा तमार से प्रेम से मलवा
वि चावे दो मीठा बोल तमार से सुनवा,
उनका आशीर्वाद ज हे तामारा लिए प्रसाद
फिर भले मत करजो तम सराद।
मरया बाद को कई आलम,
कुन का जावे कीके मालम,
बामन कागला तो जीमता रेगा,
पण तमारी आत्मा पे बोझ रेगा,
मत कर उनसे कोई वाद विवाद,
फिर भले मत करजो तम सराद।
याद आवेगी वि दर्द भरी सिसकती आवाज,
वि तड़फति आखा और कराहती आवाज,
बेटा बेटा करती माँ और बापू की परवाज,
कर सेवा इनकी क्योंकि आज तू है आबाद,
कर ले सदुपयोग समय को मत कर इके बर्बाद
फिर भले मत करजो तम सराद।
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