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सकारात्मक सोच बनाए रखिए

मेरे खेत के समीप कुछ रोज़ कमाने खाने वाले मज़दूर परिवार रहते थे। प्राय: वो सवेरे-सवेरे बच्चों का खाना (रोटी और कच्चा प्याज) छोटे कपड़े में बाँध कर काम पर चले जाते थे। वो बच्चे अपनी खुले झोपड़ों के बाहर बड़े नीम के पेड़ की छाया में खेलते रहते थे। 

कई बार उन बच्चों के बदन पर फटे वस्त्र होते थे। 

एक बार मैंने दिन में उन बच्चों को वस्र, ब्रेड और पानी की बोतलें दीं। 

बच्चों के ग्रुप लीडर ने मुझे सब कुछ तुरन्त लौटा दिया और बोला कि, सर! हमारे माता पिता ने कहा है कि हमारे जाने के बाद किसी का भी लिया-दिया मत खाना। ये भीख जैसा होता है। फिर हमारे पीछे तुम्हारी माँग कर खाने की आदत भी पड़ जायेगी। 

मैंने उन्हें बहुत समझाया किन्तु सभी टस से मस नहीं हुए। 

हालाँकि एक बच्चे की आँखों में आसूँ भी थे। वो लालायित भी था, किन्तु वो सभी बच्चों के साथ सुदृढ़ स्वरूप में खड़ा था। 

आज उन बच्चों से मुझे कुछ तो सीखने को मिला था। जीवन का एक स्पष्ट पाठ देखने और सीखने को मिला था। 

आज हम अपने परिवार में बच्चों को बढ़िया खिलाते-पिलाते हैं। उनको प्राइवेट स्कूलों में डोनेशन देकर पढ़ाते हैं। 

काश! उपर्युक्त भावना हमारे बच्चों में भी आ पाती। उनके माँ-बाप की और उनकी जीवन शैली से हम और हमारे बच्चे कुछ तो सीख पाते। 

यों तो सभी बच्चे अपने माँ-पिता का कहना नहीं मानकर वस्र, ब्रेड और पानी की बोतलें लेकर अपनी क्षुधा शान्त कर सकते थे। क्योंकि उनके माता-पिता भी वहाँ उपस्थित नहीं थे। किन्तु उन्होंने परिस्थिति का समाधान ढूँढ़ा। ताकि माता-पिता का भरोसा नहीं टूटे। 

ये सही भी है कि परिस्थितियाँ कभी समस्या नहीं बनतीं। समस्याएँ इसलिए बनतीं हैं कि क्योंकि हमें उन परिस्थितियों से जूझना ही नहीं आता। 

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