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सर्दियों के मौसम में पर्वतारोहण के ख़तरे

सर्दियों में पर्वतारोहण ख़तरे से ख़ाली नहीं है। भारत में गर्मियों, मानसून से पहले व मानसून के बाद पर्वतारोहण सामान्य है लेकिन सर्दियों में कुछ ही लोग पर्वतारोहण के लिए जाते हैं। इसका कारण है, यह कई चुनौतियों से भरा है। एक तो यह गर्मी व मानसून के पहले और मानसून बाद के मौसम जितना आसान नहीं है। दूसरा, भारी मात्रा में हिमपात और हिमस्खलन से निर्धारित मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। सर्दियों में हिमपात के चलते 'स्नो पाउडर' पर चलना उतना ही मुश्किल है, जैसे रेगिस्तान में रेत पर चलना। इसके अलावा इसमें आने वाला ख़र्च भी अधिक है। इसलिए पर्वतारोही किसी प्रायोजक को तलाशते हैं। जोखिमपूर्ण होने के बावजूद भारत में नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (उत्तराखंड) में जनवरी 2021 में विंटर एल्पाइन स्किल क्लाइम्बिंग कोर्स के तहत 20 पर्वतारोहियों को प्रशिक्षित किया गया है।

पर्वतारोहण की दो शैलियाँ हैं – एल्पाइन (अनवरत आरोहण) स्टाइल और एक्सपीडिशन (अभियान) स्टाइल। एक्सपीडिशन शैली में पर्वत पर निर्धारित लाइन में स्टॉक शिविर बनाए जाते हैं। इन शिविरों का उपयोग पर्वतारोही स्वयं को जलवायु के अनुसार ढालने के लिए करते हैं। इसमें एक ही दिशा में अनवरत चढ़ाई नहीं की जाती। दूसरी ओर, एल्पाइन स्टाइल में पर्वतारोही बिना रुके और बिना किसी मदद के अपना सारा सामान स्वयं साथ लेकर पर्वतारोहण करता है।

मूलभूत सामग्री के साथ ही सर्दियों में पर्वतारोहण के लिए हल्के उपकरणों, मज़बूत रस्सियों, हल्के पतले गर्म कपड़ों की आवश्यकता रहती है। पर्वतारोही को अच्छे अनुभव, विशेषज्ञता और शारीरिक रूप से स्वस्थ और सक्षम होने की ज़रूरत होती है। सर्दियों में पर्वतारोहण ख़ास तौर पर यूरोपीय देशों में लोकप्रिय है, जहाँ बारह महीने सर्दियों का मौसम रहता है। दक्षिण एशियाई देशों भारत, पाकिस्तान और नेपाल में यह अधिक लोकप्रिय नहीं है,जहाँ विश्व की सबसे ऊँची चोटियाँ स्थित हैं। के2 दूसरी सबसे ऊँची चोटी- ऊँचाई: 8,611 मीटर स्थित है: उत्तरी पाकिस्तान में चीन से लगती सीमा के पास कराकोरम पर्वत शृंखला में। सर्दी के मौसम में के-2 पर नवम्बर से फरवरी माह के बीच चढ़ाई खेल की सबसे बड़ी चुनौती हर चार में से एक पर्वतारोही की मौत के2 पर प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएँ अधिक पर्वतारोहियों की मौतें ज़्यादातर उतरने के दौरान हुईं।

एवरेस्ट से सकुशल वापस आए अनुभवी पर्वतारोही रास्तों में होने वाले हादसों और मौतों के लिए ट्रेनिंग की कमी को ज़िम्मेदार मानते हैं। पर्वतारोही मानते हैं कि परमिट दिए जाने से पहले उम्मीदवारों की योग्यता की जाँच होनी चाहिए।
एवरेस्ट फ़तह करने गए पर्वतारोहियों के साथ होने वाले हादसों की ख़बरें आना अब शायद आम हो गया है। आँखों में सपने और दिल में जोश भरे जब पर्वतारोही अपनी यात्रा के लिए निकलते हैं तो उन्हें शायद इस बात का वास्तविक अंदाज़ा नहीं होता कि रास्तों पर बिछी बर्फ़ कोई मखमली नहीं बल्कि पथरीला अहसास कराएगी। अमीषा चौहान भी एक ऐसी ही पर्वतारोही हैं जो एवरेस्ट के रास्तों में मिले "ट्रैफ़िक जाम" में फँसने के बाद सीधे अस्पताल पहुँच गईं। अमीषा फ़्रॉस्टबाइट का शिकार हुईं। एवरेस्ट पर होने वाले हादसों को लेकर अमीषा कहती हैं कि बुनियादी प्रशिक्षण के बिना एवरेस्ट की चोटी पर जाने वालों को रोका जाना चाहिए। अमीषा ने बताया, "चढ़ाई के दौरान मुझे ऐसे कई पर्वतारोही मिले जिनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं था और वे पूरी तरह अपने शेरपा गाइड पर निर्भर थे।"उन्होंने बताया कि जिनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं होती वे ग़लत निर्णय लेते हैं और अपने साथ-साथ शेरपा की ज़िंदगी को भी ख़तरे में डालते हैं। चढ़ाई के रास्ते पर मिलने वाली भीड़ को लेकर अमीषा बताती हैं, "मुझे नीचे आने के लिए 20 मिनट का इंतज़ार करना पड़ा, लेकिन वहाँ कई ऐसे लोग थे जो ना जाने कितने घंटों से फ़ँसे थे।" अमीषा मानती हैं कि प्रशासन को पर्वतारोहियों को एवरेस्ट पर जाने की इजाज़त देने से पहले उनकी योग्यता जाँचनी चाहिए। साथ ही सिर्फ़ प्रशिक्षित पर्वतारोहियों को ही जाने की इजाज़त मिलनी चाहिए। कुछ जानें ख़राब मौसम के चलते, कुछ ऑक्सीजन ख़त्म होने के चलते तो कुछ की मौत ठंडे रास्तों में फँसे रहने के कारण हो गईं। अमीषा बताती हैं कि कई बार पर्वतारोही स्वयं की लापरवाही के चलते जान गँवा बैठते हैं। ऑक्सीजन ख़त्म होने के बावजूद वे चोटी पर पहुँचने की ज़िद करते हैं और अपनी ज़िंदगी को ख़तरे में डालते हैं। साल 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे के पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद से पर्वतारोहण एक आकर्षक व्यवसाय बन गया है। पर्वतारोहण के लिए नेपाल की ओर से जारी किए जाने वाले परमिट की कीमत करीब 11 हज़ार डॉलर है। ऐसे परमिटों के ज़रिए नेपाल के पास अच्छी ख़ासी विदेशी मुद्रा आती है।

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