समकालीन विश्व कविता और शैलेन्द्र चौहान की कविताएँ: एक तुलनात्मक अध्ययन
आलेख | साहित्यिक आलेख शिखर जैन1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
समकालीन विश्व साहित्य एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ विविध सभ्यताओं, संस्कृतियों और राजनीतिक–सामाजिक अनुभवों का अंतर्संवाद पहले की तुलना में कहीं अधिक सघन और विस्तारपूर्ण है। कविता, जो हमेशा मानव संवेदना की सबसे तीक्ष्ण अभिव्यक्ति मानी जाती रही है, आज न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक संदर्भों से भी प्रभावित होती है। इंटरनेट, अनुवाद तकनीक और वैश्विक संवाद के कारण विभिन्न भाषाओं में लिखी जाने वाली कविताएँ एक-दूसरे से निरंतर संवाद करती प्रतीत होती हैं।
इसी व्यापक परिदृश्य में हिंदी के महत्त्वपूर्ण समकालीन कवि शैलेन्द्र चौहान की कविताएँ विशिष्ट स्थान रखती हैं। वे अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता, सामाजिक जड़ताओं के प्रति असहमति, यथार्थ के अप्रिय और कटु पक्षों के उद्घाटन तथा मानवीय सरोकारों की गहनता के कारण चर्चित हैं। जब समकालीन विश्व कविता के बड़े प्रवाह में उनकी रचनाओं को रखा जाता है, तो अनेक समानताएँ, समांतर संवेदनाएँ और विशिष्ट अंतर उभरकर सामने आते हैं।
समकालीन विश्व कविता के प्रमुख स्वर क्या हैं? शैलेन्द्र चौहान का काव्य इन स्वरों से कैसे संवाद करता है? तथा किन बिंदुओं पर वह हिंदी कविता के अपने विशिष्ट समाज-सांस्कृतिक आधार से वैश्विक साहित्य को संपृक्त करता है?
समकालीन विश्व कविता: मुख्य प्रवृत्तियाँ और अंतर्वस्तु:
समकालीन विश्व कविता को समझने के लिए पिछले तीन–चार दशकों के वैश्विक सामाजिक–राजनीतिक परिवर्तनों को ध्यान में रखना आवश्यक है। विश्व कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों को व्यापक रूप से निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है—
(क) अस्मिताओं का उदय और प्रतिरोध की आवाज़-
अफ्रीकी-अमेरिकी, लातिन-अमेरिकी, स्त्रीवादी, दलित, शरणार्थी तथा विस्थापित समुदायों की आवाज़ें विश्व कविता में शक्तिशाली ढंग से उभरी हैं। माया एंजेलू, वारसान शायर, नाओमी शिहाब नाये, ओशियन वुआंग जैसे कवि अपने अनुभवों के माध्यम से हाशिए पर पड़े लोगों की पीड़ा, संघर्ष और आत्मसम्मान की लड़ाई को स्वर देते हैं।
(ख) युद्ध, हिंसा और शरणार्थी संकट-
सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान, यूक्रेन, अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका में जारी संघर्षों ने कविता को नई करुणा, रोष और शोक-भाव प्रदान किया है। विश्व कविता में युद्ध की विभीषिका, मानवीय त्रासदी और विस्थापन बड़े विषय बनकर उभरे हैं।
(ग) पर्यावरण संकट और पृथ्वी–चिंता-
पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने, जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता के विनाश से उत्पन्न संकटों ने कवियों को सोचने और बोलने के लिए मजबूर किया है। समकालीन विश्व कविता प्रकृति को केवल सौंदर्य का पर्याय नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रश्न के रूप में देखती है।
(घ) तकनीक, उपभोक्तावाद और आत्म–वियोजन-
डिजिटल युग में मनुष्य के अकेलेपन, मशीननुमा जीवन, बाज़ारवाद और तेज़ी से टूटते रिश्तों पर विश्व कविता लगातार टिप्पणी कर रही है।
(ङ) भाषा और रूप में प्रयोगशीलता-
विश्व कविता आज मुक्तछंद, गद्य-कविता, दृश्य-कविता, बहुभाषिक काव्य, स्पोकन पोएट्री और डिजिटल कविता तक विस्तारित हो चुकी है। पारंपरिक संरचनाओं से बाहर निकलने की यह प्रवृत्ति वैश्विक स्तर पर दिखाई देती है।
इन प्रवृत्तियों के साथ तुलना करने पर हम पाते हैं कि शैलेन्द्र चौहान का काव्य इन वैश्विक संवेदनाओं से निरंतर संवाद करता है।
शैलेन्द्र चौहान की कविता: सरोकार, शिल्प और वैचारिक आधार:
(क) सामाजिक यथार्थ से सीधा टकराव-
शैलेन्द्र चौहान की कविताएँ जीवन की कठोर, असुविधाजनक और असंगत सच्चाइयों से टकराती हैं। वे सत्ता, व्यवस्था, भ्रष्टाचार, जातिगत विषमता, पूँजीवादी लालच और सामाजिक पाखंड को सीधे संबोधित करते हैं। यह स्वर वैश्विक कविता के उस प्रतिरोधी रूप से मेल खाता है जिसमें सत्ता–समीक्षा और व्यवस्था–विरोध केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
(ख) मनुष्य के पक्ष में नैतिक आग्रह-
उनकी कविता मनुष्य के प्रति गहरे विश्वास और करुणा को केंद्र में रखती है। चौहान की मानवीय प्रतिबद्धता माया एंजेलू, नाओमी नाये या यानिस रित्सोस जैसे कवियों की मानवीय दृष्टि से साम्य रखती है—जहाँ मनुष्य, उसके संघर्ष, पीड़ा और गरिमा सर्वोपरि है।
(ग) स्मृति, इतिहास और सामूहिक अनुभव-
उनकी अनेक कविताओं में इतिहास के प्रति आलोचनात्मक दृष्टि, जनपदीय स्मृतियाँ और सामूहिक अनुभव मौजूद हैं। यह प्रवृत्ति यूरोपीय, अफ़्रीकी और लैटिन अमेरिकी कवियों की उस परंपरा के समान है, जहाँ इतिहास के पुनर्पाठ के माध्यम से वर्तमान की उलझनों को समझने का प्रयास किया जाता है।
(घ) भाषा की अर्थपूर्ण सादगी और प्रतिरोधी बिंब-
चौहान की काव्यभाषा सरल होते हुए भी अत्यंत प्रभावी है। उनके बिंब प्रतीकात्मक, राजनीतिक और संवेदनात्मक तीनों स्तरों पर प्रभाव छोड़ते हैं। यह शिल्प उन विश्व कवियों से मेल खाता है जिन्होंने जटिल अनुभवों को सरल भाषा में व्यक्त करने की परंपरा विकसित की—जैसे विस्लावा शिम्बोर्स्का या पाब्लो नेरूदा।
(ङ) वंचित वर्गों के साथ एकजुटता-
हिंदी कविता में शैलेन्द्र चौहान उन कवियों में हैं जो सामाजिक न्याय, समानता और मुक्ति की आकांक्षा से प्रेरित हैं। यह वैश्विक स्तर पर प्रतिरोध की कविता का केन्द्रीय मूल्य है।
तुलनात्मक अध्ययन: समकालीन विश्व कविता और शैलेन्द्र चौहान:
(1) प्रतिरोध और सामाजिक संघर्ष: एक साझा स्वर-
विश्व कविता में उत्पीड़ित समुदायों की आवाज़ एक प्रमुख धारा है। शैलेन्द्र चौहान का काव्य भी हाशिए के मनुष्यों—मजदूरों, किसानों, दलितों, शोषित वर्गों—के साथ खड़ा होता है।
जैसे वारसान शायर युद्ध और विस्थापन को स्त्री की आँखों से देखती हैं, वैसे ही चौहान भारत के सामाजिक विस्थापन, राजनीतिक अन्याय और जीवन की कठिनाइयों को अपने ख़ास भारतीय संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं।
दोनों के यहाँ भाषा की तीक्ष्णता और अनुभव की कड़वाहट मिलती है।
(2) शहरी जीवन की विडंबनाएँ-
समकालीन विश्व कविता में शहरी अकेलापन, उपभोक्तावाद और अति-तकनीक के कारण टूटते मानवीय सम्बन्ध लगातार चित्रित होते हैं।
ओशियन वुआंग जैसे कवि इन विडंबनाओं को गहन निजी अनुभव से जोड़ते हैं, जबकि शैलेन्द्र चौहान इन अनुभवों को सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में रखकर विश्लेषित करते हैं।
इस तरह उनकी कविता व्यक्तिगत से अधिक सामूहिक और राजनीतिक हो जाती है।
(3) प्रकृति–चिंता और पर्यावरणीय संकट-
विश्व कविता में प्रकृति का प्रश्न एक वैश्विक संकट के रूप में उभरता है। शैलेन्द्र चौहान के यहाँ भी प्रकृति का विनाश केवल पारिस्थितिक चिंता नहीं बल्कि सामाजिक–आर्थिक ढाँचों की आलोचना के रूप में आता है।
(4) इतिहास और सामूहिक स्मृति की पुनर्व्याख्या-
यूरोपीय कवियों (उदा. रित्सोस) ने इतिहास के मिथ्याभाष्य को तोड़ने की परंपरा विकसित की है।
चौहान भी भारतीय इतिहास, जनसंघर्षों, प्रतिरोध—सबको पुनर्पाठित करते हैं।
इस दृष्टि से वे विश्व कविता के राजनीतिक–ऐतिहासिक प्रवाह से सीधे जुड़े दिखते हैं।
(5) भाषा और शिल्प की लोकतांत्रिकता-
विश्व कविता में आज भाषा का लोकतंत्रीकरण हुआ है—सरल, संक्षिप्त, रोज़मर्रा की भाषा में गहरे सत्य बोले जा रहे हैं।
शैलेन्द्र चौहान की कविता की भाषा भी अत्यधिक सजावटी या दुर्गम नहीं, बल्कि सहज, धारदार और सीधे संवाद करती है।
यह उन्हें वैश्विक काव्य प्रवृत्तियों के लगभग समानांतर खड़ा करता है।
(6) निजी–सार्वजनिक का अंतर्सम्बन्ध-
समकालीन विश्व कविता में निजी जीवन राजनीतिक जीवन से अलग नहीं माना जाता।
चौहान की अनेक कविताएँ निजी संवेदना की पृष्ठभूमि में समाज की क्रूर संरचनाओं को उजागर करती हैं। इस बिंदु पर वे आधुनिक विश्व कविता के बिल्कुल केंद्र में दिखाई देते हैं।
विशिष्ट अंतर: भारतीय सामाजिक यथार्थ की जटिलता-
यद्यपि शैलेन्द्र चौहान समकालीन विश्व कविता के अनेक बिंदुओं से जुड़ते हैं, परन्तु उनकी कविता में कुछ विशिष्ट भारतीय आयाम निहित हैं—
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जाति-व्यवस्था की भयावह और ऐतिहासिक त्रासदी—यह भारतीय उपमहाद्वीप की विशिष्ट समस्या है, जो उनकी कविता में बार-बार उभरती है।
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भारतीय लोकतंत्र की विडंबनाएँ—वोट, राजनीति, नौकरशाही, भ्रष्टाचार और सामाजिक दमन उनकी कविता की विशिष्ट पृष्ठभूमि बनाते हैं।
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ग्रामीण–जनपदीय संदर्भों की गहरी पकड़—विश्व कविता में जहाँ शहरीकरण मुख्य केंद्र है, वहीं चौहान की कविता ग्रामीण विवशताओं और सामूहिक स्मृतियों को लगातार आवाज़ देती है।
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भारतीय सांस्कृतिक–ऐतिहासिक प्रतीकों का उपयोग—उनकी कविता स्थानीयता से वैश्विकता की ओर पुल बनाती है।
यह विशिष्टता उन्हें विश्व कविता में एक अलग पहचान देती है।
वैश्विक और स्थानीय का सृजनात्मक मेल:
समकालीन विश्व कविता और शैलेन्द्र चौहान की कविताओं का तुलनात्मक अध्ययन यह स्थापित करता है कि—
चौहान विश्व कविता के बड़े प्रतिरोधी, मानवीय और लोकतांत्रिक प्रवाह से गहराई से जुड़े हैं।
उनकी कविता वैश्विक अनुभवों से संवाद करती है, पर अपनी जड़ों—भारतीय समाज, राजनीति, इतिहास और जनजीवन—से भी उतनी ही प्रतिबद्ध रहती है।
वे निजी दुख, सामूहिक त्रासदी, सामाजिक असमानता और राजनीतिक दमन को एक निरंतर मानवीय दृष्टि से देखते हैं, जो समकालीन विश्व कविता की प्रमुख पहचान है।
शैलेन्द्र चौहान की कविता आज हिंदी साहित्य में उस वैश्विक चेतना और स्थानीय अनुभव का संगम प्रस्तुत करती है, जो उन्हें न केवल समकालीन हिंदी के बल्कि अंतरराष्ट्रीय काव्य-परंपरा के भी एक महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में स्थापित करता है।
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