शिकवे
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुधा ओम ढींगरा16 Sep 2017
तुम्हें शिकवा था
मैं कुछ नहीं कहती
मुझे गिला था
तुम कुछ नहीं सुनते
इन्हीं शिकवे शिकायतों में
हम आगे निकल गये ..
उम्र पीछे रह गई..
अब तुम सुनना चाहते हो
पर मैं कहना नहीं चाहती
कल मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी
आज तुम्हें मेरी
ज़रूरतों से आगे
भावनायें
संवेग
दिल है
जिसकी क़द्र तुमने नहीं की
समय निकलता गया
और मैं बदलती गई
आज तुम
मुझे सुनना चाहते हो
और मैं
कुछ भी कहना नहीं चाहती
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