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तीर्थान्त

केदारनाथ त्रासदी में असंख्यों श्रद्धालुओं को अपनी जान गँवानी पड़ी। ये कैसा क़हर था भगवान का जो हर वर्ष किसी न किसी रूप में लोगों को झेलना पड़ता है। चारों तरफ चीख पुकार का कोलाहल था। तभी मलबे में दबे युवक की आवाज़ आयी- "हे भगवान! बचा ले मुझे!" उसके परिजन रो-रोकर बेहाल थे। रमाकांत ने पूरे साल इंतज़ार कर छुट्टियों का इंतज़ाम किया केदारनाथ यात्रा के लिए। लौटते समय बेटा-बहु को खोकर चले आए। कुछ के मुँह में था भगवान का बुलावा है। कुछ समय व पाप पूरे होने की दुहाई दे रहे थे। भगवान के दरबार में यात्रा वृतान्त बन गया। फिर भी हर वर्ष बसें भर भरकर यात्रिगण यात्रा पर आते हैं बिना ये सोचे कि लौटकर आ भी पाएँगें कि नहीं, बस गड्ढे या खाई में तो न जा गिरेगी। बस एक यही उम्मीद है आस्था की, जिसपर दुनिया टिकी है। आस्तिकों के लिए ये भगवान के समक्ष जीवन उत्सर्ग है तो नास्तिकों के लिए उनके पाप कर्म का पूरा होना। दुनिया व भगवान वही हैं पर आस्थाएँ तो अनेक हैं। अगले साल देखें किसका बुलावा आता है।

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