अब हमने हैं खोजी नयी ये वफ़ायें
शायरी | नज़्म उपेन्द्र 'परवाज़'15 Mar 2015
अब हमने हैं खोजी
नयी ये वफ़ायें
माँगनी शुरू कर दी
दुश्मनों के लिए दुआयें।
हम क्या बुझाते अब
इस आग़–ए–ज़िगर को
जब मिल रही थी
उनके दामन से हवाएँ।
अगर उनसे मरासिम
रखना एक ख़ता है
तो हो रही है हमसे
ख़ता पर ख़ताएँ।
हमें कूदने की ही
जल्दी पड़ी थी
दुनिया सँभाल रही थी
दे दे के सदायें।
अब कौन करे रंज अपने
इस जनाज़े का “परवाज़”
जब मुहब्बत में मिलनी
थी तुझको जफ़ाएँ।
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