अच्छा लगा
शायरी | नज़्म आशीष तिवारी निर्मल1 Sep 2021 (अंक: 188, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
तेरा ज़िंदगी में आना, अच्छा लगा
हँसना, रूठना, मनाना,अच्छा लगा।
ज़रा ज़रा सी बातों पर तुनक कर
तेरा मुँह को फुलाना, अच्छा लगा।
महफ़िल में या यूँ ही अकेले कहीं
तेरा गले से लगाना, अच्छा लगा।
सौंपकर मुझको ख़िशियाँ अनमोल
तेरा यूँ नख़रे दिखाना अच्छा लगा।
तुझ पे लिखी हैं जितनी भी नज़्में
तेरा उनको गुनगुनाना अच्छा लगा।
वहशी तरीक़े तुम टूटती हो मुझ पर
मुझे सितमगर बताना अच्छा लगा।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अच्छा है तुम चाँद सितारों में नहीं
नज़्म | क़ाज़ी सुहैब खालिदअच्छा है तुम चाँद सितारों में नहीं, अच्छा…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
नज़्म
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता
गीत-नवगीत
यात्रा वृत्तांत
ग़ज़ल
गीतिका
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं