भाई की डाँट
कथा साहित्य | लघुकथा आशीष तिवारी निर्मल1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
आनंद तब से अपने बड़े भाई राजीव को ज़ोर-ज़ोर से डाँटे जा रहा था। आनंद का कहना था– कि तुम घर से बाहर मत जाया करो। आसपास मुहल्ले के लोगों से बोलचाल मत रखो। तुम्हारी सहजता, सरलता, मृदुभाषिता के चलते लोग तुम्हारी कोई इज़्ज़त नहीं करते। तुम सबसे प्रणाम, दुआ-सलाम करते रहते हो तो लोग तुम को हल्के से लेते हैं। हर किसी से हँसकर मुस्करा कर बात मत किया करो।
लोगों की नज़रों में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं है। कोई कुछ भी काम कह दे तो फ़ौरन कर देते हो। लोगों को समय देते हो यह सब पूरी तरह बंद करो। गंभीर बनो, लोगों से बातचीत नहीं करो। घमंडी दिखो, स्वभाव से स़ख्त रहो
तब लोग इज़्ज़त देंगे सम्मान देंगे तुम्हारी अहमियत समझेंगे।
राजीव जो इतनी देर से सब ख़ामोश होकर सुन रहा था अचानक उसने ख़ामोशी तोड़ते हुए कहा कि तुम मेरे छोटे भाई होकर जब मुझे सम्मान नहीं देते। मेरी क़द्र नहीं करते। मेरी अहमियत नहीं समझते। फिर तुम दुनिया से यह अपेक्षा मेरे लिए क्यों पालते हो? पहले तुम सीखो बड़े भाई को सम्मान देना उसकी अहमियत समझना।
इतना सुनते ही आनंद जो बड़ी देर से राजीव को तुम-तुम कहकर बात कर रहा था एकदम से चुप हो गया और ये बात आनंद को तीर सी चुभी और घर में सन्नाटा पसर गया। वहीं राजीव की आँखों में आँसू थे कि सचमुच सरल होकर जीना भी कितना मुश्किल है ज़माने में।
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