अब की बरसात में
काव्य साहित्य | कविता बृजमोहन गौड़4 May 2015
नीर भरी तुम उतरो प्रियतम
अब की बरसात में
राह तुम्हारी देख रहे हैं
अब की बरसात में।
यौवन भार भरी बदली सी
छा जाओ अम्बर प्रियतम पे
कुहुक कोयल मन अम्बुआ
अब की बरसात में।
आ जाओ ले रिमझिम तराने
होंठ लगे जिनको गुनगुनाने
नाच उठे मन का ये मयूरा
अब की बरसात में।
आ जाओ बन पवन झकोरा
वनफूलों सी वास लिये
महक उठे तन-मन फिर मेरा
अब की बरसात में।
तुम हो सुनहली धूप सुबह की
मेटो ये अंधकार घना
एक किरण बन आ जाओं तुम
अब की बरसात में।
(प्रसारितः आकाशवाणी, इन्दौर)
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