अभी बाक़ी है
काव्य साहित्य | कविता राजू पाण्डेय15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
अभी दिख रहा जो, बस झाँकी है
अभी घर पे छत का होना बाक़ी है
बन गया काग़ज़ों में नीला आसमां
चमकना सूरज का अभी बाक़ी है।
अभी चल रही जो, हल्की आँधी है
अभी तो लहरों का उठना बाक़ी है
बनायी है जो काग़ज़ों की किश्ती
उसका पानी में उतरना बाक़ी है।
अभी जेठ है तो, ख़ूब धूप साँची है
अभी तो मौसम बदलना बाक़ी है
बनाया है चिकनी मिट्टी का महल
अभी आना बारिश का बाक़ी है।
अभी भोर है, कोयल खूब बाँची है
अभी भेड़ियों का शोर बाक़ी है
दिख रहा दिन में उजाला गजब
अभी "राजू" होनी रात बाक़ी है।
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