अभी नहीं देखा
काव्य साहित्य | कविता अमित डोगरा15 Jun 2020
सिर को झुकते देखा है,
पर झुकाते नहीं देखा
अभी अपनापन देखा है,
परायापन नहीं देखा
अभी प्यार देखा है,
नफ़रत नहीं देखी
अभी दोस्ती देखी है,
दुश्मनी नहीं देखी
अभी इज़्ज़त देते हुए देखा है,
बेइज़्ज़ती नहीं देखी
सब कुछ पाते हुए देखा है,
सब कुछ खोते हुए नहीं देखा
सबको साथ देते देखा है,
अकेलापन नहीं देखा
मेरी ख़ामोशी देखी है,
मुझे ज्वालामुखी बनते नहीं देखा
पानी जैसे शांत चलते देखा है,
उसी पानी को सब कुछ
बहाते ही नहीं देखा
अभी सिर्फ़ तूफ़ान देखा है,
तूफ़ान को बवंडर बनते नहीं देखा
सच्चाई पर पर्दे पड़े देखे हैं,
उन पर्दों को उठते नहीं देखा
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