अबकी बार
काव्य साहित्य | कविता सुनिल यादव 'शाश्वत’15 Dec 2019 (अंक: 146, द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)
विपक्ष का इंतज़ार,
सत्ता लग जाये हाथ,
फिर आया चुनाव,
सबकी नींद हराम,
सबकी दुहाई, सबकी पुकार,
अबकी बार? अबकी बार?
ध्वजा लिए सब हैं तैयार,
चलो मंदिर या मज़ार,
लो पहचान, कर लो याद,
हिन्दू हो या मुसलमान,
है जयघोष सबका राग,
अबकी बार? अबकी बार?
रैली होगी, भाषण होगा,
चमकती सफ़ेदी कुर्तों की,
भीड़ भी है, वादे भी हैं,
झड़ी लग रही दौरों की,
हो परिवर्तन श्रेष्ठ विचार,
अबकी बार? अबकी बार?
विरोध समर्थन, वाद विवाद,
सतत दिखे ईद के चाँद,
हाथ जोड़कर विनती करते,
पढ़ते सबके हाव-भाव,
सबके सपने होंगे साकार,
अबकी बार? अबकी बार?
हीन हृदय में घमासान,
ठहरे किनारे दो, जाए किस पर?
बनता और बिगड़ता स्वप्निल संसार,
किसकी जीत? किसकी हार?
जीते देश, होगा मल्हार,
अबकी बार? अबकी बार?
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