ऑल इज़ वैल
काव्य साहित्य | कविता लक्ष्मीनारायण गुप्ता17 Nov 2014
भले भले ही बुरी लगे
इतनी बात सही है
जो दुखी है या सुखी है
ढोता है कर्मों का शैल
नथिंग इज़ रॉन्ग, ऑल इज़ वैल।
पहले भी धरती हिलती थी
चक्रवात थे, घर उजड़े थे
नगर-ग्राम फिर पुनः बसे थे
नियत नटी की रुकी न गैल
नथिंग इज़ रॉन्ग, ऑल इज़ वैल।
ए.सी.कार घूमते डॉगी
पिछले जन्मों के हैं योगी
और तब की पतिघातका
इस जन्म में बने रखौल
नथिंग इज़ रॉन्ग, ऑल इज़ वैल।
नियति नियम को जाना किसने ?
जैसा जाना, वैसा माना
निष्कर्षों पर कोई न पहुँचा
जो कल सच था, आज है फैल
नथिंग इज़ रॉन्ग, ऑल इज़ वैल।
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