जीवन प्रवाह
काव्य साहित्य | कविता लक्ष्मीनारायण गुप्ता15 Jun 2019
अक्र बक्र दो नदी किनारे
बीच बहे जीवन की धारा।
गंगा सागर में मिलने तक
सुख-दुःख ये ही सहें हमारा।
दो कंधों से सटा रपटता
धरा धरातल पर बहता।
कभी प्रपात बनता गिरता
कभी बाँध सी पराधीनता।
कभी ऊर्जा उसे उठाकर
गगन चूमने प्रेरित करता।
कभी लेप चन्दन का बनकर
तनमन में शीतलता भरता।
हर जीवन इन से ही गुज़रे
पानी की धारा सा बहकर
कपिल मुनि के चरणों जाता
दुःख-सुखों के कंधों चढ़ कर।
सुख दुःख हैं दो नदी किनारे
पानी सा बहता यह जीवन।
गिरता, ठोकर खा कर उठता
करता पूरन यों सभी चरण।
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