अमृत कुंड
काव्य साहित्य | कविता प्रो. पुष्पिता अवस्थी8 Mar 2009
प्रेम के हठ योग में
जाग्रत है -
प्रेम की कुण्डलिनी।
रन्ध्र-रन्ध्र में
सिद्ध है - साधना
पोर-पोर
बना है - अमृत-कुंड।
प्रणय-सुषमा
प्रस्फुटित है -सुषुम्ना नाड़ी में
कि देह में
प्रवाहित है - अनगिनत नदियाँ।
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