अंडा
कथा साहित्य | लघुकथा शिवानन्द झा चंचल15 Aug 2019
मिश्रा जी अभी तक'ब्राह्मणत्व' का हवाला देकर अंडा, मुर्गी और मांस-मछली जैसी चीज़ों से परहेज़ कर रखा था। लेकिन वक़्त की अंगड़ाई के साथ परिवार की युवा पीढ़ी मांसाहार के मोहपाश से अपने आप को दूर नहीं रख पाई थी। जिसके चलते उन लोगों से कितनी बार कहा-सुनी भी की थी। लेकिन, ये क्या? डॉक्टर के केबिन में बैठे मिश्र जी को उस समय ज़ोर का झटका लगा, जब अपने बीड़ी पीने की आदत के कारण फेफड़े की तकलीफ़ से छुटकारा पाने के लिए, चिकित्सकीय परामर्श हेतु डॉक्टर के पास जाने पर, डॉक्टर ने कहा, "आपको दो अंडा प्रतिदिन एक गिलास दूध के साथ लेना होगा"।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}