नीला ज़हर
कथा साहित्य | लघुकथा शिवानन्द झा चंचल1 Jul 2019
राकेश और सुधा दोनों पति-पत्नी काम काजी थे। राकेश, बिजली ऑफ़िस में क्लर्क जबकि सुधा सरकारी विद्यालय में शिक्षिका थी। बेटा... श्रेयांश अभी चार साल का था। श्रेयांश को सुबह स्कूल भेजने के उपरांत पापा-मम्मी अपने-अपने कार्यक्षेत्र को प्रस्थान करते थे। आमतौर पर राकेश को कार्यालय से लौटने में थोड़ी देर हो जाती थी। कार्यालयीय दबाव कहें... या शारीरिक थकान... राकेश अपने बेटे श्रेयांश को उपयुक्त समय न देकर, अपनी मोबाइल यूट्यूब चला कार्टून देखने को दे देता था। मोबाइल में वीडियो दिखाने की लत लगाकर- राकेश, अपने वाजिब उत्तरदायित्व से बच रहा था। लेकिन! ये क्या? राकेश का माथा ज़ोर से ठनका, जब एक दिन उसके बेटे ने यूट्यूब से कार्टून देखने के दौरान उसके बीच स्क्रॉल हो रहे अश्लील विज्ञापन पर अपनी ऊँगली रखते हुए, पूछा, "पापा! ये क्या है?"
राकेश ने लगभग बुदबुदाते हुए कहा, ".....नीला जहर।"
"आपने कुछ कहा पापा?"श्रेयांश ने पूछा।
राकेश ने सकपकाते हुए जवाब दिया, "न......नहीं।"
आज उसे अपनी ग़लती का एहसास हो गया था,आज के बाद उसने अपने बेटे को मोबाइल से कार्टून नहीं दिखाने का प्रण ले लिया..।
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