पानी का रंग
कथा साहित्य | लघुकथा शिवानन्द झा चंचल1 Aug 2019
आज रामप्रवेश जैसे ही अपने मवेशियों को बथान (पशु रखने का स्थान) पर बाँध कर आया ही था कि उस क्षेत्र के लोकसभा प्रत्याशी ने अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ, उसके दरवाज़े पर दस्तक दी। नेताजी के आगमन के साथ ही, कार्यकर्ताओं ने रामप्रवेश के दरवाज़े की शान उसकी खाट को सरकाते हुए नेताजी को उस पर बैठाया। नेताजी ने तो भीड़ के सामने ही गर्मी और प्यास का हवाला देते हुए रामप्रवेश से एक गिलास पानी माँगा!
आंगन के चाँपाकल से पीने के लिए पानी लाने के दौरान, रामप्रवेश के चेहरे की मुस्कराहट को वहाँ उपस्थित लोग तो बख़ूबी समझ ही रहे थे। वो भी अब भली-भाँति समझ रहा था कि 'पानी का रंग' अब सियासी हो चुका है।
...आख़िर! वो ऐसा क्यों न समझे? गाँव के एक कोने में अवस्थित इस जाति विशेष की बस्ती से अन्य जातियों का पानी (खान-पान का जुड़ाव) जो नहीं चल रहा था...!
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