बदस्तूर
शायरी | नज़्म अच्युत शुक्ल6 Nov 2016
मेरे इश्क़ का मसला ये तमाम हुआ,
मैं हुआ,
बदनाम सरेआम हुआ।
मुद्दतों बाद कोई नज़र आया,
मैं हुआ,
गुल-ए-गुलफाम हुआ।
उन्होंने बाज़ार में मेरी क़ीमत जो पूछी,
मैं हुआ,
भरे बाज़ार शर्मसार हुआ।
तोड़ा दिल उन्होंने काँच से कुरेद के,
बेवफ़ा मैं ही
साबित उस बार हुआ।
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाया मैंने,
गलीज़1 ज़ुम्बिशों2 का
शिकार हर बार हुआ।
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गलीज़ = असभ्य, गन्दा
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ज़ुम्बिश = हरकत, गति
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