बेनज़ीर
शायरी | नज़्म गौरव भारती6 Sep 2017
नज़्म लिख रहा हूँ
एक बेनजीर
तुम्हारी हँसी
को लेकर
और रख जाऊँगा
तुम्हारे सिरहाने
जिसे तुम रोज़
गीला कर देते हो
आँसुओं से अपने
लेकिन इस दफ़ा
यक़ीनन मुस्कुराओगे
क्योंकि यह सिर्फ़
नज़्म नहीं
मेरी कोशिश है
लौटाने की तुम्हारी हँसी
बेनज़ीर हँसी
जिसे गठरी बाँध
रख छोड़ा था तुमने
यादों के गलियारे में
जो मुझे भेंट गयी है
यूँ अचानक
तुम इसे अपने लबों पर
सजा लेना
ज्यों अक्सर खोंस लेती थी
फूल मुझसे माँगकर
अपनी ज़ुल्फ़ों में
और मैं हरा हो जाता था।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं