ब्रह्म
काव्य साहित्य | कविता शेष अमित4 Feb 2019
वह मौजूद था जीवन में
रिश्वत की तरह।
था पर नहीं था,
नहीं था पर था-
विद्या, शक्ति, श्रद्धा हर रूप में,
निराकार ब्रह्म कहीं के!!
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