बुरे दिन हों तो
शायरी | नज़्म डॉ. उमेश चन्द्र शुक्ल1 Dec 2016
बुरे दिन हों तो अपनों से भी रिश्ता छूट जाता है
कि जैसे डाल से पतझर में पत्ता टूट जाता है
जब आँसू देखता है माँ की आँखों में कोई बच्चा
तो उसके हाथ से गिरकर खिलौना टूट जाता है
जो अपने बंद कमरे में बुना करती है शहज़ादी
सहर होने से पहले ही वो सपना टूट जाता है
कोई आसां नहीं है दिल से दिल को जोड़ कर रखना
जरा सी बदगुमानी से ये धागा टूट जाता है
अगर चेहरे को पढ़ना सीख ले कोई तो फिर देखे
ज़रा से दुःख में भी इन्सान कितना टूट जाता है
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