चाबी
काव्य साहित्य | कविता रेखा मैत्र29 Nov 2008
कई बार सोचा है मैंने-
अपनी हँसी और आँसू की चाबी
तुम्हें क्यों दे रखी है?
तुम अक्सर ही उसका
ग़लत इस्तेमाल कर जाते हो!
जब भी कभी छोटी-छोटी
ख़ुशियाँ देकर ढेर सारी
प्रसन्नता देने की बात आती है
तुम्हारी कृपणता मुझे
कहीं से छील जाती है!
जाने-अनजाने में तुम्हारा
कुछ कहा-सुना
मुझे अक्सर रुला जाता है!
सवाल है, अब तुमसे
कैसे अपनी चाबी हासिल करूँ?
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