गीली मिट्टी
काव्य साहित्य | कविता रेखा मैत्र29 Apr 2008
उसने मेरी मिट्टी तो गूँधी
पर गीली ही छोड़ दी
ना अलाव में पकाया
ना धूप में सुखाया
इसीसे लोगों की लगाई चोटें
निशान बनाती गईं
मेरे लाख छुपाए छुपी नहीं
अगर आवाज़ बन्द रखी
तो आँखें बोल गयीं!
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