अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

दुनिया बहुत आगे जा चुकी है...

मैं इण्डियन हूँ
सुबह - सुबह सो के उठा
अपना मोबाइल ढूँढा
मेरा मोबाइल एलजी का है
रिलायन्स का कनेक्शन है
आर वर्ल्ड की सुविधा है
सुबह - सुबह मूड हुआ
क्यूँ न कुछ मनोरंजन हो जाए
दुनिया कितनी आगे जा चुकी है
मोबाइल पर ही मनोरंजन हो जाता है

मैं घुस गया मोबाइल के अन्दर
मोर सर्विसेस के अन्दर
लिखा था, वुमेन्स वर्ल्ड
सोचा, अच्छा मनोरंजन मिल गया
सुबह - सुबह
उसी में था, ऑप्शन
बेबी नेम का
सोचा, चलो नाम ढूँढते हैं
मेरी बच्ची जब होगी तो
उसका नाम रख लेंगें और
बच्ची से कहेंगें
बेटी! तुम्हारा नाम
मैंने मोबाइल पर ढूँढा था
दुनिया कितनी आगे जा चुकी है

मगर, मेरे मनोरंजन की
शकल बिगड़ गयी
जब मैंने देखा
लिखा था
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन
अब मेरा मुँह बिगड़ गया
यहाँ भी यही सब
मैंने तो सोचा था
दुनिया बहुत आगे जा चुकी है

अब मैं कौन सा नाम लूँ
अपनी बच्ची के लिये
हिन्दू का................नहीं
इससे तो वो हिन्दू हो जाएगी
मुस्लिम का...........................
नहीं - नहीं
फिर तो वो अल्पसंख्यक हो जाएगी
सिख का...........................
नहीं ये भी नहीं
फिर तो वो
किसी दंगे में मार दी जाएगी
क्रिश्चियन का........................
नहीं ये भी ठीक नहीं
उसे लोग विदेशी कहने लगेंगे

मगर मैं क्या करूँ
मैं तो सोच रहा था, कोई
अच्छा सा नाम मिलेगा
मेरी बेटी को मगर
सब बेकार हो गया
मेरा दम घुटने लगा
पढ़ - पढ़ के
आभा - आरती
आयशा - आलिया
परमीत - हरकौर
जूली - जेनीफर
ये सब तो जाने - पहचाने हैं
मुझे कोई ऐसा नाम न मिला
जिसे मैं अपनी बेटी को दे सकूँ

उधर मुझे लगा
चारों...............अरे! वही चारों
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन
आपस में झगड़ रहे हैं
कि मेरा अच्छा है
मेरे में शान्ति है
मेरे में जन्नत है

मैं बोर होने लगा, मगर तभी
मैंने देखा
चार के चारों, भागे आ रहे हैं
मेरी ओर
मुझे लगा, मैं गया
आया था, नाम ढूँढने
ये सब मिलकर, मार डालेंगे

फिर क्या था
अभी तो मुझे बहुत कुछ
करना था
शादी भी, बेटी भी
मैं भागा, वो सब
मेरे पीछे
भागे आ रहे हैं
मेरा दम घुटने लगा

 मैं भागता रहा
वो भगाते रहे
बैक करते - करते
मैं डर रहा था
कहीं गलती से
हड़बड़ी में ही
कोई एक
सेलेक्ट न हो जाए
जब मैं बैक करते - करते
डिस्पले तक पहुँचा
तब जाके राहत मिली
और मैंने पीछे मुड़ के
देखा, चारों
मोबाइल के स्क्रीन की
जेल में बन्द हो गये
और आपस में कह रहे थे

यार! हाथ नहीं आया कमीना
ये कहते वक्त, चारों अपने - अपने
हाथ मसल रहे थे
अब मैंने जाना
दुनिया कितनी आगे जा चुकी है

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

कहानी

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं