गौतम कुमार ’सागर’ – मुकरियाँ – 001
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक गौतम कुमार 'सागर'1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
1)
चिपटा रहता है दिन भर वो
बिन उसके भी चैन नहीं तो
ऊँचा नीचा रहता ’टोन’
ए सखि साजन? ना सखि फोन!
2)
सुंदर मुख पर ग्रहण मुआ
कौन देखे होंठ ललित सुआ
कब तक करूँ इसे बर्दाश्त
ए सखि साजन? ना सखि मास्क!
3)
इसे जलाकर मैं भी जलती
रोटी भात इसी से मिलती
ये बैरी मिट्टी का दूल्हा
ए सखि साजन? ना सखि चूल्हा!
4)
डार डार और पात पात की
ख़बर रखें हज़ार बात की
मानों हो कोई जिन्न का बोतल
ए सखि साजन? ना सखि गूगल
5)
उसकी सरस सुगंध ऐसी
तृप्ति पाये रूह प्यासी
फुलवारी का वो रुबाब
ए सखि साजन? ना सखि गुलाब !
6)
कभी तेज़ तो कभी हो मंद
नदियों में वो फिरे स्वछंद
पार उतारे तट के गाँव
ए सखि साजन? ना सखि नाव !
7)
क़समें, वादे और सौगंध
वो है पदभिमान में अंध
अबकी आए तो मारूँ जूता
ए सखि साजन? ना सखि नेता!
8)
हृदय के यमुना के तट पर
आता वो है बनकर नटखट
रूप अधर और नैन मनोहर
ए सखि साजन? ना सखि गिरधर
10)
उसके बिन है जीवन मुश्किल
चलो बचाएँ उसको हम मिल
जीवन की रसमय वो निशानी
ए सखि साजन? ना सखि पानी
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