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गौतम कुमार ’सागर’ – मुकरियाँ – 001

1)
चिपटा रहता है दिन भर वो 
बिन उसके भी चैन नहीं तो
ऊँचा नीचा रहता ’टोन’ 
ए सखि साजन? ना सखि फोन!
 
2)
सुंदर मुख पर ग्रहण मुआ
कौन देखे होंठ ललित सुआ 
कब तक करूँ इसे बर्दाश्त 
ए सखि साजन? ना सखि मास्क!                 
 
3)
इसे जलाकर मैं भी जलती 
रोटी भात इसी से मिलती 
ये बैरी मिट्टी का दूल्हा 
ए सखि साजन? ना सखि चूल्हा!  
  
4) 
डार डार और पात पात की 
ख़बर रखें हज़ार बात की 
मानों हो कोई जिन्न का बोतल 
ए सखि साजन? ना सखि गूगल 
 
5)
उसकी सरस सुगंध ऐसी 
तृप्ति पाये रूह प्यासी 
फुलवारी का वो रुबाब 
ए सखि साजन? ना सखि गुलाब !
 
6) 
कभी तेज़ तो कभी हो मंद 
नदियों में वो फिरे स्वछंद 
पार उतारे तट के गाँव 
ए सखि साजन? ना सखि नाव !
 
7) 
क़समें, वादे और सौगंध 
वो है पदभिमान में अंध 
अबकी आए तो मारूँ जूता 
ए सखि साजन? ना सखि नेता!
 
8) 
हृदय के यमुना के तट पर 
आता वो है  बनकर नटखट 
रूप अधर और नैन मनोहर 
ए सखि साजन? ना सखि गिरधर 
 
10)
उसके बिन है जीवन मुश्किल 
चलो बचाएँ उसको हम मिल 
जीवन की रसमय वो निशानी 
ए सखि साजन? ना सखि पानी 

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