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अमरेश सिंह भदौरिया - मुक्तक - 001

1.
कहीं      भक्त     बदलते   हैं,
कहीं    भगवन   बदलते   हैं।
गिरगिट की तरह आजकल,
इंसान       बदलते           हैं।
किस     पर     करें  भरोसा ,
जताएं    यक़ीन   किस पर ;
कपड़ों   की तरह लोग अब,
ईमान         बदलते        हैं।

2.
अंगारों     से     जब-जब 
मैं    हाथ    मिलाता   हूँ।
जलन     के     हर   बार 
अहसास   नए   पता  हूँ।
दूसरे     के  अनुभव   से 
बेशक तुम्हारा  काम चले,
अनुभव हक़ीक़त के लिए
मैं    हाथ    जलाता    हूँ।

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टिप्पणियाँ

Mohan tripathi 2022/01/07 10:19 PM

Shandar rachana likhi hai aap ne aap ko dil se salam

Amulya Singh 2021/08/06 12:17 PM

Sir...... Amazing!

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