अमरेश सिंह भदौरिया - मुक्तक - 001
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक अमरेश सिंह भदौरिया15 Feb 2020
1.
कहीं भक्त बदलते हैं,
कहीं भगवन बदलते हैं।
गिरगिट की तरह आजकल,
इंसान बदलते हैं।
किस पर करें भरोसा ,
जताएं यक़ीन किस पर ;
कपड़ों की तरह लोग अब,
ईमान बदलते हैं।
2.
अंगारों से जब-जब
मैं हाथ मिलाता हूँ।
जलन के हर बार
अहसास नए पता हूँ।
दूसरे के अनुभव से
बेशक तुम्हारा काम चले,
अनुभव हक़ीक़त के लिए
मैं हाथ जलाता हूँ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
Amulya Singh 2021/08/06 12:17 PM
Sir...... Amazing!
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
कविता
लघुकथा
कहानी
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Mohan tripathi 2022/01/07 10:19 PM
Shandar rachana likhi hai aap ne aap ko dil se salam