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नयी पीढ़ी

 

वो, 
जो किताबों की धूल छोड़
स्क्रीन की चमक में
अपना भविष्य तलाश रही है। 
 
जिसकी उँगलियों में
क़लम की स्याही नहीं, 
टचस्क्रीन की स्मृति है। 
 
जो इतिहास को
डेटा में देखती है, 
और विरासत को
गूगल में खोजती है। 
 
वो नयी पीढ़ी—
जिसके सपनों में
सिर्फ़ ऊँचाई नहीं, 
रफ़्तार भी है। 
जिसके पास सवाल ज़्यादा हैं, 
पर सब्र कम। 
 
जिसके लिए ‘घर’
चार दीवारें नहीं, 
नेटवर्क की ताक़त है। 
 
वो पीढ़ी
जो परंपरा को
पोंछकर नई परिभाषाएँ गढ़ रही है, 
जो रिश्तों के नाम बदल रही है, 
और कह रही है—
“हम अपने समय के देवता हैं।”
 
लेकिन, 
कभी-कभी मैं सोचता हूँ, 
इनकी आँखों में
जो चमक है, 
वो भीतर के अँधेरे को
कब तक छिपा पाएगी? 
 
जब स्मृतियाँ
क्लाउड से मिट जाएँगी, 
और पहचान
यूज़रनेम बन जाएगी, 
तो क्या बचा रहेगा
इस नयी पीढ़ी के पास? 
 
शायद . . . 
कुछ अधूरी प्रेम कहानियाँ, 
कुछ खोए हुए शब्द, 
कुछ टूटे हुए सपने, 
और बची रह जाएगी
वो तलाश—
जिसे कोई ऐप डाउनलोड नहीं कर सकता। 

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