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बच्चे की प्रार्थना

 

माँ दुर्गे, 
मैं बालक हूँ—
परन्तु आज
तेरे चरणों में
मनुष्य मात्र की ओर से
एक विनय लेकर उपस्थित हूँ। 
 
दशहरे के इस पर्व पर
सिर्फ़ रावण का पुतला न जले, 
अपितु जलें
वे दस दुराचार
जो मनुष्य के भीतर
आज भी जीवित हैं। 
 
पहला— झूठ की कुटिलता, 
दूसरा— आलस्य की जड़ता, 
तीसरा— लालच का मोहजाल, 
चौथा— क्रोध की ज्वाला, 
पाँचवाँ— ईर्ष्या का विष, 
छठा— अहंकार की कठोरता, 
सातवाँ— असहिष्णुता की दीवार, 
आठवाँ— हिंसा की छाया, 
नवाँ— स्वार्थ का अंधकार, 
और दसवाँ— भ्रष्टाचार का असुर। 
 
माँ! 
यदि इनका संहार हो सके
तो यह पृथ्वी
एक नवयुग की दहलीज़ पर
प्रकाशमान हो उठे। 
 
मेरा यह बालमन
तेरे समक्ष
प्रार्थना करता है—
कि अगला दशहरा
केवल उत्सव न होकर
मानवता के जागरण का पर्व बने। 

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