इंतज़ार
कथा साहित्य | कहानी अमरेश सिंह भदौरिया1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
सुबह-सुबह गर्म चाय का प्याला पति के हाथ में देते हुए मीरा ने कहा, “कल रात की बात का मुझे बहुत अफ़सोस है, मैंने आपका कहना नहीं माना आपको अपनी ख़ुशी के लिए मैंने परेशान किया आज मेरा पूरा शरीर टूट रहा है कमर में भी बहुत दर्द है।”
मुकेश ने चाय की सुड़की ली, “ये क्या आज फिर इतनी मीठी चाय, तुमसे हज़ार बार मैंने कहा कि मेरा शुगर लेवल पहले ही इतना बढ़ा हुआ है और उस पर इतनी मीठी चाय . . .!
“ये तुम्हारा रोज़-रोज़ का नाटक इससे मैं तंग आ गया हूँ।”
मीरा ने चाय का प्याला लेते हुए कहा, “कोई बात नहीं, ये चाय मैं पी लूँगी, आपके लिए मैं दूसरी बना लाती हूँ,” वह रसोई में चाय बनाने चली गयी।
मुकेश के स्वभाव में आजकल कुछ चिड़चिड़ापन बढ़ गया था, इस बात को लेकर वह बड़ा चिंतित-सा रहने लगा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि ये बढ़ती उम्र का प्रभाव है या कोई मानसिक रोग है। मुकेश अकेला ही था, पर बहने पाँच थीं, तीन बड़ी और दो छोटी। सभी का विवाह पिता जी ने अपनी सामर्थ्यानुसार कर दिया था। वो भी किसी से कोई क़र्ज़ लिए बिना, जो उस समय बहुत बड़ी बात थी, सिर्फ़ खेती की आमदनी से पाँच बेटियों की पढ़ाई-लिखाई और सबकी शादी-विवाह साथ ही मुकेश की पढ़ाई उसका विवाह, अपने अकेले दम पर। इतना सब कुछ करते हुए बाबू जी का पूरा जीवन खप गया, बुढ़ापे के लिए उनके पास अब बेटे (मुकेश) का ही सहारा था। सभी बेटियाँ अपने-अपने घर-गृहस्थी में बहुत ख़ुश थीं। जब तक माता जी जीवित रहीं सभी बेटियों का साल में एक दो बार आना-जाना हो जाता था। माता जी अब नहीं हैं, उनके स्वर्गवास को लगभग दस वर्ष बीत गए। माता जी के न रहने पर गृहस्थी की चाभी मीरा के हाथ में आ गयी है, जिससे मुकेश की बहनों या यूँ कहें कि मीरा की ननदों का अपने पीहर से नाता टूट गया है। पिता जी अभी हैं, किन्तु पिछले तीन वर्ष से बिस्तर पर। पिता जी की आयु तिरान्नबे वर्ष की है, उनका खाना-पीना, मल-मूत्र सब बिस्तर पर ही होता है। बहनों के शादी-विवाह के कारण मुकेश के विवाह में कुछ विलम्ब हो गया था। लोक उक्ति है कि इंतज़ार का फल मीठा होता है, ये बात मुकेश के हिस्से में बिल्कुल सही थी, अंतर सिर्फ़ इतना था कि पत्नी (मीरा) की उम्र मुकेश से दस वर्ष कम थी। विवाह के समय मुकेश अपने से कम उम्र की पत्नी पाकर बहुत ख़ुश हुआ था।
मीरा बहुत सुंदर थी, औसत क़द . . . कमसिन उम्र . . . गोरा रंग . . . छरहरी काया . . . नाभि पर काले रंग के तिल का निशान . . . घड़े के आकार की कमर . . . स्वभाव में स्वाभाविक फुर्तीलापन सब कुछ तो था।
ज्योतिष यह कहता है कि जिस रमणी के नाभि पर तिल का निशान होता है वह अन्य महिलाओं की तुलना में अधिक कामुक होती है। उसकी इच्छाओं को तृप्त कर पाना पति के लिए दाम्पत्य जीवन की सबसे बड़ी चुनौती होती है। इस बात में बिल्कुल सच्चाई थी।
मुकेश अकेला होने के कारण और मीरा की मादक सुंदरता के मोह में पड़कर कभी घर से बाहर, परदेश जाने की नहीं सोच पाया। मुकेश की तीन संतानें थीं, एक लड़की दो लड़के, लड़की बड़ी थी जिसका नाम सना था, उसका विवाह दो वर्ष पहले बड़ी अच्छी जगह हो गया था, लड़का (दामाद) पुलिस में था, इसलिए शादी में दहेज़ अधिक देना पड़ा था। सना के विवाह में मुकेश को बहुत भटकना पड़ा, बड़ी मुश्किल से ये सम्बन्ध मीरा की बड़ी बहन और बहनोई के सहयोग से हो पाया था। उनके कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने सना की शादी में ख़ूब बढ़-चढ़कर ख़र्च किया था। सना की शादी में आये हुए अधिकांश बाराती तो यही समझ रहे थे कि लड़की के असली माता-पिता यही हैं। इस बात को लेकर बाबू जी नाराज़ रहते थे कि मैंने अपनी पाँच बेटियों की शादी की और कभी किसी के आगे अपना हाथ नहीं फैलाया। एक तुम (मुकेश) हो कि एक बेटी के शादी करने में तुम्हें रिश्तेदारों के आगे हाथ फैलाने पड़े। तुम्हारे ऐसा करने से बिरादरी में मेरी साख पर बट्टा लग गया। इतना कहते-कहते बाबू जी की आँखें भर आतीं।
“बचपन कभी लौटकर नहीं आता, जवानी जाते देर नहीं लगती, और बुढ़ापा काटे नहीं कटता।”
मुकेश के चेहरे पर बढ़ती उम्र का प्रभाव साफ़ नज़र आने लगा था, बढ़ती उम्र दांपत्य जीवन को प्रभावित करती है। ये बात मुकेश तो अच्छी तरह समझ चुका था . . . किन्तु मीरा को इस बात का आभास नहीं हुआ था।
उसका मन अभी मौज-मस्ती की परिधि से बाहर नहीं निकल पाया था। या यूँ कहें कि बुझते समय दीपक की लौ कुछ तेज़ हो जाती है यह उक्ति मीरा के विषय में पूर्णतया सच थी।
“बढ़ती उम्र . . . घटता पौरुष . . . क्षरित होता सौंदर्य . . . अतृप्त इच्छायें . . . आर्थिक दबाव और पति-पत्नी में आयु का अंतर ये सब मिलकर दांपत्य जीवन की मधुरता को शनैः-शनैः समाप्त कर देते हैं।”
मुकेश के बड़े लड़के का नाम सुमित था, वह दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था। घर की सभी ज़िम्मेदारियों का भार उसी के कंधों पर थीं।
“ज़िम्मेदारियाँ व्यक्ति को समय से पहले बड़ा कर देती हैं।”
ये बात सुमित छात्र जीवन में रहते ही समझ चुका था।
मुकेश की जो तीसरी संतान है, वह संतान के नाम पर कलंक है।
उसका नाम अनिकेत है, जो दिनभर इधर-उधर आवारागर्दी में घूमता रहता है। उसका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता, और न घर का ही कोई काम-धाम सही से देखता है। मुकेश की परेशानी का कारण एक ये भी है अनिकेत का कुछ न करना। एक दो बार उसको दिल्ली भेजा गया, किन्तु वह महीने दो महीने में घूम फिर कर वापस घर लौट आया।
अभी तक घर में सभी सो रहे थे, सुमित कल रात में आ गया था, वह भी अभी सोया हुआ है। मीरा ने एक दो बार आवाज़ लगाई, पर वो कल सफ़र का थका हुआ था इसलिए उठा नहीं। आज उसके रिश्ते के लिए कुछ लोग आने वाले हैं, सना भी दो दिन पहले ही आ गई है, वह भी अभी तक जगी नहींं है। इन दिनों उसको आराम की सख़्त ज़रूरत है, डॉक्टर ने उसे आराम करने की सलाह दी है, सना माँ बनने वाली है, उसका आठवाँ महीना चल रहा है। मीरा चाय बनाकर ले आयी।
मुकेश ने दरवाज़े के कमरे में लेटे हुए बाबू जी को उठाकर बाहर चबूतरे पर बैठाया, उनकी देखभाल सिर्फ़ मुकेश ही सही तरीक़े से करता है। बाबू जी की देखभाल मीरा भी करती है, किन्तु दोनों की देखभाल में अंतर है। मुकेश इसलिए करता है कि वह उनका बेटा है और मीरा इसलिए करती है कि बाबू जी को हर महीने वृद्ध पेंशन मिलती है। जब से बेटा, सुमित कमाने लगा है तब से मीरा के देखभाल करने के तरीक़े में कुछ बदलाव आ गया है।
मुकेश ने बाबू जी का कमरा साफ़ किया, उनके कपड़े बदलवाए, बिस्तर को हटाकर नया बिस्तर बिछाया और चादर बिछाई। बाबू जी को हाथ पैर धुलवाये, मंजन करवाया तथा नया अँगोछा दिया हाथ पैर पोंछने के लिए। ये अँगोछा सुमित कल दिल्ली से लेकर आया है। इतने में सुमित उठकर आ गया उसने बाबू जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। बाबू जी बहुत प्रसन्न हुए, इतने दिनों बाद होनहार पोते को देखकर बाबू जी की आँखों से ख़ुशी के आँसू निकल पड़े। सुमित पूरे ग्यारह महीने बाद दिल्ली से लौटा है। सुमित ही है जो पूरे घर में सबसे अलग है, वह अधिक पढ़ तो नहीं पाया किन्तु व्यवहार कुशल है और ज़िम्मेदार भी। उसने अपने जीवन में कुछ सिद्धांत अपना रखे हैं। सुमित जब स्नातक की पढ़ाई कर रहा था तो एक दिन दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर ने युवाओं के लिए के लिए बड़ा सारगर्भित और संदेशपरक व्याख्यान दिया था:
“ईश्वर ने यदि हमें मनुष्य शरीर में जन्म दिया है तो वह किसी व्यवस्था से हमें वंचित नहीं रखेगा बस हमें सही समय का इंतज़ार करना चाहिए सही समय आने पर हमें हमारी ज़रूरत की हर व्यवस्था मिल जाएगी हमारे पास किसी की धरोहर (कौमार्य) जो ईश्वर प्रदत्त है उसे उस समय तक सँभाल कर रखना चाहिए जब तक कि उसका उचित उत्तराधिकारी आकर उसे सही-सलामत रूप से प्राप्त न कर ले यदि हमने समय से पहले भावावेश में आकर उसे किसी दूसरे को दे दिया तो आने वाले को मिलेगा क्या?”
सुमित ने प्रोफ़ेसर साहब की बात को अपने मन में गाँठ बाँधकर रख ली थी। इसलिए वह युवावस्था की विसंगतियों से बचा हुआ था।
छात्र जीवन से लेकर आज तक उसकी कहीं कोई चर्चा सुनायी नहीं पड़ी, जैसा कि आजकल के नवयुवकों की आये दिन किसी न किसी घटना का ज़िक्र बिरादरी में अक़्सर चर्चा का विषय बना रहता है, कभी लड़ाई-झगड़ा तो कभी प्रेम-प्रसंग। अभी पिछले महीने ही रामभरोसे का मँझला लड़का मुहल्ले की एक लड़की को लेकर भाग गया। उसका बीते दो वर्षों से उस लड़की से प्रेम-प्रसंग चल रहा था। घरवाले इसका विरोध करते थे कि ये सब बात अच्छी नहीं है, इससे परिवार के माथे बहुत बड़ा कलंक . . . किन्तु उसके सिर पर तो प्यार का नशा सवार था मौक़ा पाते ही वह अपना काम कर गया। युवा पीढ़ी की इन्हीं हरकतों से आजकल हर माँ-बाप एक अज्ञात भय से ख़ुद को डरा हुआ महसूस करते हैं।
सुबह के आठ बज चुके थे, मीरा ने रोज़ की तरह जल्दी नहाकर सबके लिए नाश्ता तैयार किया। सना के लिए दलिया बनाया। अनिकेत आज अपने रोज़ के समय से थोड़ा पहले उठ गया, पता नहीं बड़े भाई को दिखाने के लिए या कुछ और सोचकर। सभी लोग नहा-धोकर तैयार हो गए, सबने एक साथ मिलकर नाश्ता किया। बाबू जी को भी नाश्ता कराया गया, आज बाबू जी बहुत ख़ुश थे, क्योंकि आज सुमित के रिश्ते के लिए जो लोग आ रहे थे। उनके साथ सबसे बड़ी बेटी और दामाद भी आने वाले हैं।
जब से बाबू जी बीमार हुए थे बेटियाँ ख़ुद समय निकालकर उनसे मिलने चली आती थीं। एक दो दिन रुककर वापस चली जाती थीं, क्योंकि मीरा को उनका अधिक रुकना अच्छा नहीं लगता था। बेटियाँ जब बाबू जी की पास जब बैठती हैं तो मीरा को यही लगता है कि बाबू जी ज़रूर हमारी बुराई उनको बता रहे होंगे।
“संसार में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनमें मधुरता कम तकरार ज़्यादा होती है उन्हीं में से एक रिश्ता है ननद और भौजाई का।”
बाबू जी के जीवन में पत्नी के न रहने के बाद बड़ी एकांगिता आ गई थी। वह अपने मन की पीड़ा सिर्फ़ बेटियों से कहते थे इससे उनके दिल का बोझ कुछ हल्का हो जाता था।
“स्त्री अपना अकेलापन किसी तरह काट लेती है किन्तु पुरुष का अकेलापन बड़ा दुरूह हो जाता है इसका कारण यही है कि स्त्रियाँ अपने मन की पीड़ा अड़ोस-पड़ोस में जाकर चोरी-छिपे किसी से कह लेती हैं तो उनके मन का भार कम हो जाता है किन्तु पुरुष ऐसा कर नहीं पाता। उसको डर रहता है कि घर की बात घर से निकलकर बाहर चली जायेगी तो बदनामी उसी की होगी।”
भक्तिकालीन कवि रहीम जी ने सच ही कहा है कि:
“रहिमन निज . . . कोय”
सुमित इतने दिनों बाद वापस गाँव आया था तो उसके कुछ मित्र जो बड़े घनिष्ठ थे वो सब मिलने आ गए। भोला और रामू ये दोनों ही सुमित के बड़े ख़ास थे। बहुत दिनों बाद तीनों मिले थे बैठकर गपशप करने लगे, कुछ देर तक बातों का सिलसिला चलता रहा, फिर तीनों उठकर बीच गाँव की तरफ़ घूमने चले गए।
अनिकेत पास के क़स्बे से कुछ मिठाई और नाश्ते के सामान लेने के लिए मोटरसाइकिल से चला गया। मीरा ने उसे समझाकर भेजा था कि समय से लौट आना, क्योंकि वो आज़ाद ख़्याल का था पता नहीं घूमने में पड़ जाय तो याद ही न रहे कि समय पर घर भी लौटना है। घर में मेहमानों के स्वागत की जो तैयारियाँ थी लगभग पूरी हो चुकी थीं बस कुछ सामान जो बाहर से लाना था वही शेष था।
सना स्नान करके कपड़े बदल रही थी तभी उसका मोबाइल बजा। उसने फ़ोन उठाया और देखा तो उसकी मौसी का फ़ोन था। उनसे बात की तो पता चला कि आज मौसा जी और मौसी दोनों लोग साथ आ रहे हैं। सना ने फ़ोन रखा, कपड़े पहने, माँ को यह ख़ुशख़बरी सुनाई, मीरा बहुत प्रसन्न हुई। इतने में अनिकेत भी सामान लेकर आ गया, उसने सामान और बचे हुए पैसे माँ के हाथ में थमाए। मीरा ने सामान और पैसे सना को देते हुए कहा इसको ले जाकर कमरे में रख दो मैं दोपहर का खाना जल्दी से बना लूँ नहीं तो सब लोग आ जाएँगे तो समय नहीं मिलेगा इतना कहकर वह रसोई में चली गई। सना दरवाज़े के कमरे में जाकर बेडशीट, परदे और सोफ़ा कवर बदल रही थी, तभी दरवाज़े पर एक चमचमाती हुई कार आकर खड़ी हुई। उसमें से कुछ लोग उतरे, उसने खिड़की से देखा अरे! ये तो फूफा और बुआ जी हैं। दो लोग और थे जिनको वह नहीं पहचान सकी, क्योंकि आज से पहले उसने उन लोगों को कभी देखा नहीं था। सना ने जब अपना दिमाग़ दौड़ाया तो समझ गई कि ये दोनों अज़नबी सुमित के रिश्ते के लिए . . . वह बहुत ख़ुश हुई और अनिकेत को धीरे से आवाज़ लगाई कि बाहर जाकर उन लोगों के बैठने का इंतज़ाम करे इतना कहते घर के अंदर चली गई।
फूफा जी, बुआ जी दोनों ने बाबू जी को प्रणाम किया और स्वास्थ्य का हालचाल पूछने लगे। बाबू जी ने कहा, ठीक हूँ आप सबको देखने की बड़ी इच्छा हो रही थी। फूफा जी ने उन दोनों लोगों का भी परिचय कराया जो रिश्ते के लिए आये थे। अनिकेत ने दरवाज़े पर कुर्सियाँ डालीं सबको प्रणाम किया फूफा व बुआ जी के चरण छुए। बुआ जी का बैग उठा कर घर ले गया साथ में बुआ जी भी। सना ने आँगन में बुआ जी के लिए चारपाई डाली उनको पानी पीने के लिए एक प्लेट में बर्फी और एक गिलास ठंडा पानी लाकर दिया। अनिकेत मिठाई और ठंडा पानी मेहमानों के लिए दरवाज़े पर ले गया। मीरा सबके लिए चाय बनाने लगी, चाय अलग-अलग दो बार बनानी पड़ी। कुछ लोगों के लिए चीनी की और कुछ के लिए बिना चीनी वाली। दरवाज़े पर लोग अभी पानी ही पी रहे थे कि मौसा जी और मौसी भी बुलट से आ गए। दोनों लोगों ने एक दूसरे की धूल साफ़ की, गाँव रास्ता मुख्य सड़क से कुछ दूर कच्चा है जिससे लोगों को काफ़ी परेशानी उठानी पड़ती है।
मीरा ने मुकेश को फ़ोन करके कुछ नाराज़गी के साथ बताया कि घर में मेहमान आये हुए हैं और तुम्हारा कुछ अता-पता ही नहीं है।
सना ने सुमित को फ़ोन किया, “तुम जल्दी घर आ जाओ यहाँ सब लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं।”
सुमित ने कहा, “दीदी तुम फ़ोन रखो मैं अभी पहुँच रहा हूँ।”
मीरा ने चाय छानकर साथ में नमकीन और बिस्कुट अलग-अलग रखकर अनिकेत से दरवाज़े पहुँचवाये। और ख़ुद चाय लेकर बाहर वाले कमरे में सना के मौसा-मौसी के पास गई। सना से कहा कि बिना चीनी वाली चाय और नमकीन बुआ जी को दे दें। सुमित ने आकर दोनों मौसा और मौसी के पैर छुए, आशीर्वाद लिया, उसने देखा कि आँगन में बुआ जी चारपाई पर बैठी चाय की चुस्कियाँ ले रही हैं। मुस्कुराते हुए उसने बुआ जी पैर छूकर आशीर्वाद लिया, और चारपाई के पैताने की तरफ़ बैठकर हालचाल पूछने लगा। बुआ जी ने चाय पीकर कप किनारे रखा, और पर्स से एक फोटो निकालकर सुमित को देते कहा कि यही वह लड़की है जिसका रिश्ता तुम्हारे लिए आया है; देखकर बताओ कैसी है? लड़की की फोटो सलवार सूट में थी। सुमित ने एक नज़र फोटो देखकर सना को दे दी, सना ने फोटो देखकर कहा, लड़की बहुत सुंदर है। मीरा ने फोटो देखी, मौसी और मौसा ने भी। लड़की सबको पसन्द थी, बस इंतज़ार था रिश्ता तय होने का, दान-दहेज़ तय होने का। बुआ जी ने बताया कि रिश्ता अच्छा है लड़की अकेली है, पिता सरकारी स्कूल में मास्टर है, भाई आर्मी में है। दान-दहेज़ ख़ूब मिलेगा, लड़की भी पढ़ी-लिखी है, सुंदर है, गृह कार्य में निपुण है, सुमित की जोड़ी बहुत अच्छी रहेगी।
दरवाज़े पर बातचीत चल रही थी, मुकेश भी आ गया, साथ में गाँव के नेता चाचा भी थे। कुछ लोग बात कर रहे थे तो कोई अख़बार पढ़ रहा था। बीच-बीच में देश के सार्वजनिक मुद्दे, राजनीति पर भी बात होने लगती थी। नेता चाचा को राजनीति की चर्चा में बहुत आनंद आता था। इसी बीच दुबारा चाय बनकर आ गई, इस बार चाय लेकर सुमित आया था। सुमित ने नेता चाचा को प्रणाम किया, फूफा के पैर छुए, रिश्ते लेकर जो लोग आये थे उनको भी प्रणाम किया। नेता चाचा सभाचातुर्य व्यक्ति थे, ऐसे मौक़े पर गाँव के लोग उनको अक़्सर बुला लेते थे। इन बातों में उनको बड़ा आनंद आता था, किसी की प्रशंसा करनी हो तो ये गुण उनसे सीखा जा सकता था। तारीफ़ के पुल बाँधने की कला में उनको महारथ हासिल थी, फिर सुमित तो गाँव में सबसे अच्छा लड़का था ही, उसकी अच्छाइयों में जितना भी कहा जाय उतना ही कम था।
लड़की का नाम सुनंदा था, शादी बन रही थी, क्योंकि सुमित और सुनंदा दोनों की एक ही राशि थी। लड़की और लड़के का नाम अगर एक ही राशि के अंतर्गत हो तो शादी वैसे ही बन जाती है। घर में आज बड़ा ख़ुशी का माहौल था। मीरा और उसकी बहन आज बड़े दिनों बाद मिली थीं दोनों कमरे में बैठी बातें कर रही थीं। मीरा का कहना था कि दीदी रिश्ता तो बढ़िया है पर मन में एक डर है कि अगर शादी तय हो गयी तो उसे ज़्यादा समय तक टाला नहीं जा सकता है। मैं नहीं चाहती कि ख़ुशी के इस ख़ूबसूरत मौक़े में किसी तरह का कोई ख़लल पड़े। अब तुम तो हमारे दिल का हाल जानती हो दीदी यही कि बाबू जी पिछले तीन वर्ष से बिस्तर पर हैं। इधर घर में शादी की तैयारी की जाय और उधर बाबू जी कहीं . . . इसलिए मैं बेटे की शादी में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।
अनिकेत ने दरवाज़े से आकर बताया कि फूफा और बुआ दोनों लोग तैयार हैं जाने के लिए, इसी कार से चले जायेंगे। कल उन लोगों को दिल्ली जाना है किसी काम से इस कारण रुक नहीं पाएँगे। लड़की के पिता और चाचा वो लोग भी बाबू जी से जाने की अनुमति लेने लगे। ड्राइवर ने गाड़ी घुमाई, नेता चाचा ने लड़की के पिता को आश्वासन दिया कि आप चिंता न करें आपका ही रिश्ता होगा। फूफा बुआ ने बाबू जी को प्रणाम किया, आशीर्वाद लिया और कार में बैठकर चले गए। नेता चाचा ने दो कप चाय पी थी उतना काम कर दिया, वो भी अपने घर चले गए।
आइए अब देखते हैं किसको किसका इंतज़ार है?
- सुमित को इंतज़ार है अपने सपनों की राजकुमारी का।
- सना को इंतज़ार है दो से तीन होने का, माँ बनने का, ननद बनने का।
- अनिकेत को इंतज़ार है नई-नवेली भौजाई के आने का।
- बाबू जी को इंतज़ार है समधी बनने का, पौत्रवधू के आने का।
- मुकेश को इस बात का इंतज़ार है कि कब मीरा को यह समझ में आएगा कि अब हमारे दिन नहीं रहे मौज-मस्ती करने के।
- मीरा को इंतज़ार है बाबू जी की साँसों के खाताबही पूरा होने का।
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