बदरी बहुत घनी है
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत अमरेश सिंह भदौरिया26 Jan 2019
1.
आँखों से कुछ दृष्टिहीन
हाथों से थामें दूरबीन
देख रहे हैं दूर क्षितिज को
भेद रहे पहचान परिधि को
रेगिस्तान की रेती में
ढूँढ़ते शाम शबनमी है।
बदरी बहुत घनी है, बदरी बहुत घनी है।
2.
ऋतुओं में आयी विकृतियाँ
रूप बदलती हैं आकृतियाँ
कोयल मौन बोलते दादुर
तरुणाई कुछ है सृजनातुर
आसमानी कैनवास पर
धुँधली सी तस्वीर बनी है।
बदरी बहुत घनी है, बदरी बहुत घनी है।
3.
क़लम लिख रही है परिहास
सच को कौन बधाये आस
इंद्रधनुष में रंग नए हैं
शोषण के सब ढंग नए हैं
गोल-गोल काले छल्लों सा
धुआँ उगलती चिमनी है।
बदरी बहुत घनी है, बदरी बहुत घनी है।
4.
आँचल में ममता मजबूर
और भी बदल गए दस्तूर
नियति ने बदला है इरादा
सिसकियाँ भरती मर्यादा
कथनी-करनी में "अमरेश"
अस्तित्व की ठना-ठनी है।
बदरी बहुत घनी है, बदरी बहुत घनी है।
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